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महाराष्ट्र की सियासत में उथल-पुथल: NDA में क्यों शामिल हुए अजित पवार? जानें इतने बड़े फैसले के पीछे की वजह

 


महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल जारी है। शिवसेना-भाजपा गठबंधन में दरार की खबरों के बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के खास कहे जाने वाले शरद पवार के भतीजे और विपक्ष के नेता अजित पवार ने अपनी पार्टी को झटका दे दिया है। वे एनसीपी का दामन छोड़ अब एनडीए यानी महाराष्ट्र की सरकार में शामिल हो गए हैं। उन्होंने रविवार दोपहर डिप्टी सीएम की शपथ ले ली। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि भतीजे ने अपने चाचा का साथ ही छोड़ दिया।


एनसीपी में दरार उस समय शुरू हुई, जब पार्टी का 25वां स्थापना दिवस समारोह मनाया जा रहा था। दरअसल, एनसीपी के स्थापना दिवस समारोह में अध्यक्ष शरद पवार ने बड़ा एलान किया था। पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और पार्टी के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किया था। जबकि भतीजे अजित पवार को लेकर कोई एलान नहीं किया गया। पवार की ओर से हुए एलान में सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब की जिम्मेदारी भी दी गई। अब पहले जानते हैं, कि इससे पहले क्या कुछ हुआ.


एनसीपी में अब तक क्या-क्या हुआ? 

एनसीपी में सियासी बदलाव की कहानी नवंबर 2019 से शुरू हुई थी। तब विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा को 105 सीटों पर जीत मिली थी। शिवसेना के 56 और एनसीपी के 54 प्रत्याशी चुनाव जीते थे। कांग्रेस को 44 सीटों पर जीत मिली थी। 


भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाली शिवसेना ने मुख्यमंत्री के मुद्दे पर गठबंधन तोड़ लिया। भाजपा भले ही सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन बहुमत के आंकड़ों से दूर थी। बहुमत के लिए पार्टी को 145 विधायकों का समर्थन चाहिए था। आनन-फानन में अजित पवार ने एनसीपी का समर्थन दे दिया और देवेंद्र फडणवीस सीएम बन गए। अजित पवार ने डिप्टी सीएम का पद की शपथ ली।


ये सबकुछ अजित ने खुद के बल पर किया। मतलब इसके लिए उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की मंजूरी नहीं ली थी। कुल मिलाकर ये एक तरह से बगावत थी। इसका असर हुआ कि पांच दिन के अंदर ही एनसीपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया। अजित चाहते हुए भी भाजपा के साथ नहीं जा पाए। देवेंद्र फडणवीस की सरकार गिर गई। 


उधर, एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बना ली। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनाए गए, जबकि अजित पवार को डिप्टी सीएम का पद फिर से मिल गया। जब शिवसेना में दो फाड़ हुआ और वापस भाजपा की सरकार बनी तो अजित गुट में हलचल तेज हो गई। कई एक्सपर्ट कहते हैं कि अजित गुट चाहता है कि भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र में राजनीति करें, जबकि पवार ऐसा नहीं चाहते हैं। 


दो मई को शरद पवार ने अचानक अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। 24 घंटे तक इसको लेकर खूब गहमा-गहमी रही, बाद में नेताओं के कहने पर पवार ने अपना इस्तीफा वापस भी ले लिया। हालांकि, तभी ये तय हो गया था कि शरद पवार पार्टी में कुछ बड़ा करने वाले हैं।


बाद में, पार्टी के 25वें स्थापना दिवस समारोह पर शरद पवार ने दो कार्यकारी अध्यक्ष के नामों का एलान किया। इसमें एक बेटी सुप्रिया सुले हैं तो दूसरे पार्टी के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल का नाम है। सुप्रिया को केंद्रीय चुनाव समिति का प्रमुख भी बनाया गया। इस दौरान अजित को लेकर कोई एलान नहीं किया गया। 


नाराज थे अजित

इसके बाद से ही राजनीतिक गलियारों में चर्चा बनी हुई थी कि अजित पवार एनसीपी से नाराज हैं। हालांकि, पार्टी लगातार इस पर पर्दा डालती रही। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता अजित पवार ने हाल ही में मीडिया में आई उन खबरों को खारिज कर दिया था, जिनमें कहा जा रहा था कि सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को संगठन का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से वह नाखुश हैं।


अजित पवार ने कहा था कि जो लोग कह रहे हैं कि कोई जिम्मेदारी नहीं मिली, मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि मेरे पास महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी है। वहीं, शरद पवार ने भी कहा था कि अजित नाराज क्यों होंगे। उनकी सहमति से ही सब फैसले लिए गए हैं। हालांकि, अब साफ है कि अजित पवार पार्टी से नाखुश थे। उनके नाखुश होने वाली बात अफवाह नहीं बल्कि सच थी।

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