श्री मारवाड़ी हिंदी पुस्तकालय में विशेषज्ञों ने दी राय, पुस्तकों के प्रकाशन में वृद्धि के साथ डिजिटल माध्यमों पर हुई चर्चा
गत 2 अक्तूबर को श्री मारवाड़ी हिंदी पुस्तकालय द्वारा 'वर्तमान दौर में पुस्तक पढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ी है' विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस नए कार्यकाल की पहली गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए अध्यक्ष विनोद रिंगानिया ने कहा कि इस तरह की विचार गोष्ठियों का उद्देश्य किसी निष्कर्ष तक पहुंचने के बजाय, किसी विषय पर अपने विचारों को विकसित करना है। उन्होंने जोर देकर कहा कि पुस्तकें किसी भी संस्कृति का आधार होती हैं, और बिना किसी सर्वेक्षण के इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि पुस्तक पढ़ने की प्रवृत्ति कम हुई है। इसके विपरीत, पुस्तकों के प्रकाशन में 19% की वृद्धि दर्ज की गई है।
दिनकर कुमार ने पुस्तक पढ़ने की प्रवृत्ति को याददाश्त के लिए लाभकारी बताते हुए कहा कि अब गंभीर लेखन, प्रेरणात्मक, आत्मकथात्मक और फैंटेसी से भरपूर किताबें अधिक बिक रही हैं। संतोष बैद ने कहा कि अनुवाद के कारण हिंदी पाठकों की संख्या में वृद्धि हुई है, खासकर फिक्शन और माइथॉलॉजी से संबंधित किताबें अब खूब पढ़ी जा रही हैं।
सुरेंद्र सिंह ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अब उपहार स्वरूप दी जाने वाली पुस्तकें भी नहीं पढ़ी जा रही हैं। प्रमोद तिवारी ने कहा कि पत्रिकाएं और अखबार गंभीर साहित्य पढ़ने की पहली सीढ़ी होते हैं। सौरभ बोथरा ने यह तर्क दिया कि पुस्तकें अब संवाद और ज्ञान की टूल मात्र हैं, जिन्हें विकिपीडिया और अन्य डिजिटल माध्यमों ने प्रतिस्थापित कर दिया है।
सरोज जालान ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि लेखक तो बढ़े हैं, लेकिन पाठकों की संख्या नहीं बढ़ी। लक्ष्मीपत बैद ने गूगल के आगमन के साथ किताबें खरीदने की जरूरत पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब लोग सोचते हैं कि जब गूगल है तो किताबें क्यों लेनी चाहिए। पुष्पा सोनी ने कहा कि लोग अब उतना ही पढ़ते हैं जितना उन्हें लिखने के लिए आवश्यक होता है।
विचार गोष्ठी की संचालिका अंशु सारडा अन्वि ने इस सत्र का समापन करते हुए कहा कि डिजिटल माध्यमों की उपेक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन हर किताब जिंदगी को देखने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है। उन्होंने यह भी जोर दिया कि बच्चों में प्रारंभ से ही पुस्तक पढ़ने की प्रवृत्ति विकसित की जानी चाहिए।
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