संपत मिश्र
समाज में जब कोई पहल अपनी जड़ों और परंपराओं को आधुनिकता के साथ जोड़कर आगे बढ़ाई जाती है, तो वह केवल एक आयोजन नहीं रहता, बल्कि एक आंदोलन बन जाता है। कुछ ऐसा ही कार्य गुवाहाटी में विप्र फाउंडेशन जोन-8 और गुवाहाटी चैप्टर ने मिलकर कर दिखाया है। विवाह जैसे संवेदनशील विषय पर जिस प्रकार से एक संगठित, सुव्यवस्थित और व्यापक सम्मेलन का आयोजन किया गया, उसने न केवल विप्र समाज में, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत में एक नई दिशा का संकेत दिया है।
बीते वर्षों की विफलता से लेकर आज की सफलता तक का सफर
20 वर्ष पूर्व गुवाहाटी के सांगानेरिया धर्मशाला में एक विवाह परिचय सम्मेलन आयोजित किया गया था। उद्देश्य था — समाज में एक मंच तैयार करना जहाँ युवा-युवतियाँ और उनके परिवार एक-दूसरे को समझ सकें और विवाह प्रस्तावों पर विचार कर सकें। लेकिन दुर्भाग्यवश, उस सम्मेलन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। उस समय की सामाजिक रूढ़ियाँ, संवादहीनता और तकनीकी सहयोग की कमी के कारण यह प्रयास निष्फल रहा।
इस विफलता ने एक लंबा सन्नाटा ला दिया। हर बार जब इस तरह के आयोजन की बात उठती, तब पुराने अनुभवों की छाया लोगों के मन में डर पैदा कर देती थी — "पूर्वोत्तर में यह सफल नहीं होगा।"
विप्र फाउंडेशन का निडर प्रयास:-
परंतु विप्र फाउंडेशन के गुवाहाटी चैप्टर ने इस चुनौती को स्वीकार किया। शिवकुमार पारीक के नेतृत्व में जब इस विचार को पुनः जीवित किया गया, तब भी अनेक शंकाएँ और सवाल सामने आए। लेकिन उनकी मजबूत इच्छाशक्ति और टीम के संगठित प्रयासों ने इस अवधारणा को मूर्त रूप दिया।
अरुण शर्मा (नंदन) और शैलेंद्र शर्मा ने बतौर संयोजक पूरे आयोजन की कमान संभाली और उसे अत्यंत ही सुव्यवस्थित रूप से संचालित किया। परिणामस्वरूप, इस बार यह सम्मेलन केवल विचारों का आदान-प्रदान नहीं रहा, बल्कि 8 जोड़ियों के रिश्ते तय हुए और उनके अभिभावकों ने सहमति भी दी — यह आयोजन की सबसे बड़ी सफलता रही।
बिहार से सहभागिता: आयोजन की व्यापक पहुँच
इस आयोजन की सफलता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बिहार के बेतिया से एक दंपत्ति केवल अपने पुत्र/पुत्री के लिए रिश्ता तलाशने हेतु इस सम्मेलन में आए। उन्होंने न केवल इस प्रयास की सराहना की, बल्कि यह निर्णय भी लिया कि वे बिहार में भी इसी प्रकार का सम्मेलन आयोजित करने की दिशा में काम करेंगे।
समय के साथ बदलते सामाजिक परिदृश्य की झलक
आज के दौर में विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों और संस्कृतियों का मिलन होता है। पहले रिश्तेदार ही रिश्ता तय कर देते थे — "समधी ही समधी की जड़ होता है" — यह कहावत अपने समय में सटीक थी। परंतु अब समय बदल चुका है।
रिश्तेदारों की निष्क्रियता, बढ़ती एकलता और समाज में संवाद की कमी ने युवा पीढ़ी को प्रेम विवाह की ओर धकेल दिया है। प्रेम विवाह कोई गलत परंपरा नहीं, परंतु जब वह जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करता है, तब समाज की मूल आत्मा पर खतरा उत्पन्न होता है।
ऐसे में विप्र फाउंडेशन का नारा “ब्राह्मण की बेटी ब्राह्मण के घर” आज की सामाजिक आवश्यकता बन गई है।
महिला सहभागिता और सामाजिक चेतना का विस्तार
20 वर्ष पूर्व जब विवाह परिचय सम्मेलन आयोजित हुआ था, तब एक भी अविवाहित युवती उसमें भाग लेने नहीं आई थी। यह उस समय की मानसिकता और पारिवारिक संकोच को दर्शाता था। परंतु आज की स्थिति बिल्कुल विपरीत है। इस सम्मेलन में युवतियाँ स्वयं आगे आईं, उन्होंने अपना बायोडाटा और फोटो सहित विवरण परिणय तालिका पत्रिका में प्रकाशित कराया।
यह सामाजिक चेतना का वह स्तर है जहाँ युवतियाँ अपने भविष्य को लेकर सजग हैं और अपने समाज में ही एक उपयुक्त जीवनसाथी की तलाश करना चाहती हैं।
सम्मेलन में देशभर से सहभागिता
इस आयोजन में तिनसुकिया, जोरहाट, रंगिया, तुरा, राजस्थान, गुजरात, बिहार सहित अन्य क्षेत्रों से 150 से अधिक पंजीकरण हुए। यह इस बात का संकेत है कि समाज अब रूढ़िवादी सोच को छोड़कर संगठित प्रयासों और समकालीन जरूरतों के अनुरूप आगे बढ़ रहा है।
कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका
इस अभियान की सफलता में अनेक कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की मेहनत शामिल रही। उनमें प्रमुख नाम हैं:
पुरुष नेतृत्व: शिवकुमार पारीक (अध्यक्ष), अरुण शर्मा (नंदन), शैलेंद्र शर्मा, अमित पारीक, राकेश भातरा, प्रभात शर्मा, सीए विकास पारीक, दीपक शर्मा, जय सोती, अरविंद पारीक, दयाराम गुर्जर गोड, सुरेंद्र शर्मा, रोहित खंडेलवाल। इसके अलावा कई युवक पर्दे के पीछे रहकर इस कार्य की सफलता को अंजाम दे रहे थे। कई नए और उत्साही युवकों ने भी इस कार्यक्रम में सहभागिता दी। विप्र युवा असम के कई अनुभवी कार्यकर्ताओं का प्रत्यक्ष रूप से इस कार्यक्रम में सहयोग रहा।
महिला नेतृत्व: रजनी शर्मा, जया पारिक, रंजना पारीक, सुनीता बागड़ा, पिंकी शर्मा, सुमन शर्मा, स्वाति सोती, निशा पारीक आदि
सभी कार्यकर्ताओं ने तन, मन और धन से इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए योगदान दिया।
इस परिचय सम्मेलन में सबसे गौर करने वाली बात यह रही की राजस्थान की छन्याति पत्रिका की डा मनाली व्यास व राम जीवन व्यास जो 2000 किलोमीटर की यात्रा तय करके सम्मेलन को सफल बनाने के लिए अपनी दो वर्षीय बच्ची को भी इस गर्मी मे लेकर आये। डॉक्टर मनाली व्यास ओर शैलेंद्र शर्मा के संचालन मे समाज बंधु कार्यक्रम समापन तक बैठे रहे।
निष्कर्ष: समय की माँग को पहचानिए
विवाह परिचय सम्मेलन आज केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि समाज की आवश्यकता बन गया है। यदि हम समय की माँग के अनुरूप नहीं चले, तो आने वाला समय हमें ऐसी परिस्थिति में पहुँचा देगा जहाँ समाज का मूल स्वरूप ही संकट में पड़ जाएगा।
समाज की बेटी समाज में ही ब्याही जाए — यही उद्देश्य हो, यही प्रयास हो। विवाह के इस पवित्र रिश्ते को अगर सामाजिक मूल्यों और जागरूकता के साथ जोड़ा जाए, तो न केवल रिश्तों में स्थायित्व आएगा, बल्कि समाज भी संगठित, सुरक्षित और समृद्ध बनेगा।
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