गुवाहाटी - महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान एवं प्राच्यविद्या संस्कृत प्रतिष्ठान के संयुक्त तत्वाधान में अखिल भारतीय वेद सम्मेलन के तीन दिवसीय कार्यक्रम का आज लायंस आडोटोरियम में शुभारंभ हुआ। वेडमहोत्सव के नाम से आयोजित आयोजित होने वाले इस भव्य कार्यक्रम को भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के समाचार के साथ ही संक्षिप्त रूप दे दिया गया। इसके उद्घाटन सत्र को स्मृति स्मरण सभा के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी की आत्मा की शांति के लिए वेदो कीं ऋचाओ का पाठ किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में असम सरकार के शिक्षा मंत्री सिद्धार्थ भट्टाचार्य ने दीप प्रज्वलित करने के पश्चात अटल बिहारी बाजपेई को श्रद्धा सुमन अर्पित किया। इस अवसर पर भट्टाचार्य ने अपने वक्तव्य में अटल बिहारी वाजपेई के अपने पिताजी के साथ मधुर संपर्क के बारे में बोलते हुए कहा कि अटलजी ओर मेरे पिताजी की गहरी दोस्ती थी। बचपन में 16 साल की उम्र में मैं उनसे पहली बार मिला। उस समय मैं उनके व्यक्तित्व को पहचान नहीं पाया। मगर जब से मैंने राजनीति की क्षेत्र में पांव रखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि अटल जी एक महान व्यक्तित्व के धनी हैं। बाजपेयी जैसी पुण्य आत्मा भारत जैसे देश को ही प्राप्त होती है। संस्कृत के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि आजकल पंडितों के संस्कृत उच्चारण में विसंगति देखी जाती है। हम ऐसे वेद सम्मेलन आयोजन करके इसे दूर कर सकते हैं। असम के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा असम जनजाति प्रधान देश है। इसका नाता रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। प्राचीन ग्रंथों मे यह प्रागज्योतिषपुर नाम से जाना जाता था। वेदों के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि वेद हमारे लिए परंपरा नहीं धरोहर है। वेद की ज्यादा से ज्यादा चर्चा होनी चाहिए। वेद के ज्ञान को प्रदेश की उन्नति के लिए व्यवहार करना चाहिए। आज आयोजित वेद सम्मेलन से असम की धरती पवित्र हुई है। इससे पहले विशिष्ट अतिथि के रुप में असम पर्यटन विभाग के अध्यक्ष जयंत मल बरुवा ने कहा कि आज भारत के सौ से ज्यादा विद्वान आयोजन में उपस्थित है। यह हमारा सौभाग्य है। असम संस्कृत की भूमि है। प्राचीन काल से संस्कृत का प्रभाव असम की भूमि पर था। कालांतर में संस्कृत का प्रभाव कम होने लगा। वर्तमान हमारे सनातन संस्कृति से संस्कृत जुड़ी हुई है। संस्कृत वेद का प्रचार कर उसे आगे ले जाना हमारा कर्तव्य बनता है। वैदिक सम्मेलन इसी प्रचार की एक कड़ी है। असम सरकार भी इसके लिए आगे आकर सक्रिय रूप से जुड़ गई है। विशिष्ट अतिथि के रुप में महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्यालय उज्जैन के उपाध्यक्ष रविंद्र मुदै ने भी अपना वक्तव्य रखा। सचिव विरूपाक्ष जडडी पाल ने भी अपना संबोधन दिया। समारोह में सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद का पाठ भी विद्वानों द्वारा किया गया। प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के अध्यक्ष विनय शर्मा ने भी सभी अतिथियों का स्वागत किया। सम्मेलन के द्वितीय चरण में शोध पत्र वाचन एवं व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में असम परिवहन निगम के अध्यक्ष आनंद तिवारी ने बोलते हुए कहा कि भारत को विश्व गुरु बना कर फिर से विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, शंकराचार्य को लाना होगा। वर्तमान का भारत संविधान पर आधारित सबको साथ लेकर चलने वाला है। हमारा मौलिक ज्ञान-विज्ञान भी हमारे साथ चल रहा है। इन दोनों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही है। दूरियों को पाटने के बारे में हमें गंभीर चिंतन करना होगा। आज के युग में द्विज की परिभाषा को संशोधन करने की आवश्यकता है वरना द्विज लोगों को रास्ता नहीं दिखा पाएंगे। भारत बहुभाषी देश है जो भारत का अलंकार है इसे रहना चाहिए। योग की तरह वनस्पति विज्ञान को भी विश्व पटल पर हम लाने में सक्षम है। यह कार्य हमें अब करना है। आज के कार्यक्रम का कुशल संचालन प्राच्यविद्या संस्कृत प्रतिष्ठान के सचिव विनय मिश्रा ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में गुवाहाटी विश्वविद्यालय और बी बरुवा कालेज की संस्कृत की छात्राएं और संस्कृत प्रतिष्ठान के जनसंपर्क सचिव संपत मिश्र, निरंजन सीकरिया, सीमांत शर्मा, रविंद्र गुप्ता विशेष सहयोग दिया।
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