राजेश राठी व ओमप्रकाश तिवारी
लखीमपुर। लखीमपुर शहर के समीप जोहिःग में स्थित त्रिवेणी संगम में हजारों श्रद्धालुओं ने माघ पूर्णिमा के अवसर पर स्नान किया । इस अवसर पर दो दिवसीय भब्य धार्मिक महायज्ञ का भी आयोजन किया गया । कल से चल रहे इस कार्यक्रम में आज प्रातः 6:00 बजे से त्रिवेणी संगम में स्नान के लिए श्रद्धालुओं का ताता लगा रहा । इस पावन अवसर पर परम श्रद्धेय ब्रह्मालीन स्वामी श्री सुखराम दास जी महाराज के अनुयाई श्री धाम वृंदावन वाले संत श्री हरिशरण जी महाराज , बिहाली निवासी विशिष्ट धार्मिक प्रवक्ता विनोद जी खंडेलवाल , लखीमपुर दुर्गा मंदिर के आचार्य पंडित रंगनाथ चतुर्वेदी इत्यादि आध्यात्मिक विद्वानों ने धार्मिक प्रवचनों से उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को भक्ति में भाव विभोर कर रखा ।
इसके अलावे सभी समुदाय के धार्मिक सांस्कृतिक संगठनों द्वारा अभूतपूर्व सांस्कृतिक कार्यक्रमो का प्रदर्शन किया गया । जिसमें उड़ीसा से आए हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम दल का कार्यक्रम अत्यंत सराहनीय एवं मंत्रमुग्ध करने वाला रहा । आयोजक मंडली द्वारा त्रिवेणी संगम स्थल पर आने वाले सरदार श्रद्धालुओं के लिए सभी तरह की व्यवस्था की गई थी। स्नान करने के पश्चात लोग वहां चल रहे पूजा मंडप में हवन करते उसके पश्चात उन्हें उनके लिए चाय तथा खिचड़ी प्रसाद की भी व्यवस्था की गई थी ।आयोजक मंडली ने उक्त स्थल पर चिकित्सा शिविर , धार्मिक ग्रंथों की पुस्तक मेला , स्थानीय संस्कृति से जुड़े अलग-अलग समुदायों के सामग्री की प्रदर्शनी का आयोजन भी किया था ।उल्लेखनीय है लखीमपुर जिले के मुख्यालय उत्तर लखीमपुर शहर से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर जोहिंग में यह त्रिवेणी संगम स्थित है। रंगानदी , जोहिंग नदी तथा ढेकिया नदी इन तीन नदियों के संगम स्थल को त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है ।
संगम स्थल पर तीनों नदियों का पानी अलग-अलग रंग का स्पष्ट दिखाई देता है ।जिसमें रंगानदी का पानी ठंडा ,जोहींग नदी का पानी गर्म तथा ढेकिया नदी का पानी समशीतोष्ण है। संगम में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं ने इन गर्म और ठंडे पानी का पूरा आनंद उठाया । पंडित रंगनाथ चतुर्वेदी ने अपने वक्तव्य में उक्त पावन स्थल पर उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं के समक्ष अपने प्रवचन में त्रिवेणी संबंध संगम के महत्व को बताते हुए कहा कि पुराण में इस त्रिवेणी संगम का नाम महीसागर संगम है जिसका हमारे स्कंद पुराण में उल्लेख है । उन्होंने बताया कि महाराज भरत के पुत्र सत्संग को कोई संतान नहीं थी। अतः उन्होंने शिवजी से आराधना करके संतान प्राप्ति का वर प्राप्त किया । प्रतिफल उन्हें एक कन्या प्राप्त हुई किंतु कन्या का सारा शरीर सारा शरीर स्त्री का तथा मुंह बकरी का था। जब वह कन्या धीरे-धीरे बडी हुई तब वह सर्वगुण सर्वगुण संपन्न हुई। एक दिन दर्पण में अपने मुंह को देखकर उसे आत्मग्लानि हुई । वह शिवजी के पास जाकर अपना मुंह बकरी का होने का कारण कारण पूछा तब शिवजी ने बताया कि एक गुप्त तीर्थ है जिसका नाम है महीसागर संगम। तुम पूर्व जन्म में तुम बकरी योनि में रहकर पानी पीने गई थी और पेड़ की टहनियों में फंसकर मर गई। तुम्हारा सारा शरीर उस संगम में बह गया और तुम्हारा सिर अभी उसी लता में अटका हुआ है । तुम उसे उसी संगम में बहा दो तो तुम्हारा मुंह स्त्री का हो जाएगा।
कुमारीका पिता से आज्ञा लेकर शिव जी के निर्देशन में यहां आई और अपने मुख को जो बकरी का था उसे संगम में विसर्जित कर दिया तब उसका मुख सुंदर स्त्री का हो गया । इसके पश्चात वह कुमारी का पिता से आज्ञा लेकर यहीं पर तपस्या करने लगी और पिता ने इस पूरे क्षेत्र को कुमारिका को दान में दे दिया । उसी समय से यह क्षेत्र कुमारीका क्षेत्र के नाम से विख्यात हो गया। कालांतर में यहां के बुजुर्ग इस स्थान को लक्षिदह के नाम से जानते हैं। कुमारीका ने आगे चलकर शिवजी से विवाह किया तथा चित्रलेखा के नाम से प्रसिद्ध हुई । बाणासुर के शिव धाम जाने के बाद स्वयं शिव के सानिध्य में चली गई। इस आयोजन के प्रथम दिन असम सरकार के मंत्री रंजीत दत्व ,लखीमपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद प्रधान बरुआ, लखीमपुर विधायक उत्पल दत्त भी शामिल रहे।
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