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होलीः जीवन में रंगों का महत्व


                                   सुरेन्द्र किशोरी
होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं बल्कि ऋतु परिवर्तन के उद्घोष के साथ सदियों की परंपरा का भी संदेश देती है, जहां बड़ों के चरण स्पर्श, देव दर्शन और छोटों के प्रति स्नेहाशीष के साथ पूर्णता होती है। होली एक तरह से मन का त्यौहार है और वैसे भी जब मन प्रफुल्लित होता है तब हर क्षण फागुन और हर दिन होली का उत्सव मनाता है। अपनों के बीच एकाकीपन, गुस्सा, अवसाद जैसे इमोशन इस पर्व में पानी में घुल जाते हैं। होली के समय मौसम भी सुहाना हो जाता है।
सूरज की उष्णता, भक्त प्रह्लाद का पुनर्स्मरण और लोकगीतों पर मग्न हुरियारों की मस्ती हृदय में उन कोमल भावों को जागृत करती है जो हमारे सारे अहंकार को त्यागकर स्वजनों को रंगों से सराबोर कर देती है। इंद्रधनुषी रंगों की बौछार न सिर्फ हमारे तन को रंगती है बल्कि हृदय से आत्मा को भी जोड़ती है। होली में खुशियां बांटने और रिश्तों में मिठास घोलने के लिए एक-दूसरे को रंग लगाने के साथ तरह-तरह के पकवान, व्यंजनों एवं पेय पदार्थों का स्वाद लेने का भी आनंद आता है। लोग बड़े उल्लास से कई दिन पहले ही होली के त्यौहार पर विशेष तरह के पकवान तथा व्यंजन बनाने की तैयारियां करने लगते हैं। त्योहार पर इन्हें प्रसन्न मन से बनाते हैं तो इसका आनंद ही कुछ और होता है। विशेष रूप से गुजिया और ठंडाई इस त्यौहार में अत्यधिक पसंद की जाती है लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में विशेष तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।
होली में रंग खेलने, एक-दूसरे को रंग लगाने का जो रिवाज है उसके पीछे भाव है कि लोग जीवन में रंगों के महत्व को समझें। जब सभी लोग विविध रंगों में रंगकर अपनी पहचान खो देते हैं और सभी एक समान प्रतीत होते हैं तो यह दृश्य बताता है कि हम मनुष्य भले ही समाज में जात-पात, ऊंच-नीच, कुल-धर्म, समानता-असमानता, रंग-भेद आदि से मनुष्यों के बीच दीवार खड़ी कर लेते हैं लेकिन वास्तव में हम सभी इन सबसे ऊपर मनुष्य ही हैं, परमात्मा की दृष्टि में हममें कोई भेदभाव नहीं है। हम सभी में उसी परमात्मा का अंशरूप जीवात्मा मौजूद है, भिन्नता है तो सिर्फ हमारे कर्मों, मनोवृतिओं, दृष्टिकोण एवं सोच में। यदि इन सब में भी परिष्कृति आ जाए तो हम मनुष्य किसी देव से कम नहीं हैं। 
रंगों का अपना सौंदर्य होता है, रंगों का अपना आकर्षण होता है और रंग व्यक्ति पर भी प्रभाव डालते हैं। होली में जो रंग खेलने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं यदि उनमें रासायनिक तत्वों का इस्तेमाल है तो वह हमारे लिए नुकसानदेह है। प्राकृतिक रूप से बने रंगों का प्रयोग करें तो यह अत्यंत लाभदायक होने के साथ होली के त्यौहार के आनंद को कई गुना बढ़ा देते हैं। पहले की होली पारंपरिक रीति-रिवाजों से मनाई जाती थी लेकिन अब पाश्चात्य संस्कृति की देखा-देखी होली में अश्लीलता का प्रादुर्भाव तेज हो चुका है। होली के बहाने लोग अश्लील हरकतों से बाज नहीं आते हैं। इस अश्लीलता को गति देने में होली के द्विअर्थी गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। होली के बहाने होनेवाली अश्लीलता के इस कुचक्र को भी तोड़ना होगा।

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