एक साल में एक हजार क्विंटल खाद का कर रहे उत्पादन
भागलपुर। खेती में लगातार रासायनिक खाद का उपयोग करने से मिट्टी लगातार बंजर होती जा रही है। रासायनिक खाद से तैयार फल और सब्जी खाने से लोगों मे अनेक तरह की बीमारियां होने लग गई है। शुरुआती दौर में वैज्ञानिक खेती में उपज और पैदावार को बढ़ावा देने के लिए रासायनिक खाद के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देते थे लेकिन खेती में बहुत अधिक रासायनिक खाद के उपयोग से भूमि में नमी की मात्रा घटती ही जा रही है और भूमि भी सख्त हो गई है।
उल्लेखनीय है कि अधिकतर किसान पशुओं का पालन करते हैं। पशुओं के चारा खाने के बाद पशु से प्राप्त मलमूत्र, गोबर, शेष बचा हुआ चारा या फिर खेती करने के बाद खेत मे बची हुई हरी घास और पेड़ – पौधों की पत्तियों से कई तरीकों से घर पर जैविक खाद तैयार कर सकते हैं। जैविक खाद के बढ़ते प्रचलन और इसे होने वाली बीमारी को लेकर भागलपुर के बंसीटीकर मोहल्ले में लाल बहादुर सिंह उर्फ लड्डू शास्त्री ने जैविक खाद का व्यवसायिक उत्पादन का काम शुरु कर दिया है।
लाल बहादुर सिंह बताते हैं कि रसायनिक खाद के प्रचलन से कई तरह की बीमारियां लोगों को होने लगी है। इसी को देखते हुए मैंने जैविक खाद का काम शुरु किया है। जैविक खाद के उत्पादन का छोटा यूनिट 25 30 हजार रुपये में शुरू हो जाता है। उन्होंने बताया कि उनके पास गोबर की उपलब्धता है। सबसे पहले गोबर को खटाल में डाला जाता है। फिर सात दिन में गोबर के ठंडा होने के बाद इसमें केचुआ डाला जाता है। इस खाद को तैयार करने में 3 महीने का समय लगता है। उन्होंने बताया कि 42 खटाल के माध्यम से वो जैविक खाद का उत्पादन कर रहे हैं। एक साल में एक हजार क्विंटल जैविक खाद का वो उत्पादन कर लेते हैं। जैविक खाद का उनका सालाना कारोबार लगभग 25 लाख रुपये का है। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग से इस काम में अनुदान मिलता है लेकिन उनके द्वारा प्रयास किए जाने के बाद भी अभी तक उन्हें योजना का लाभ नहीं मिल सका है।
आत्मा भागलपुर के उप परियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह ने बताया कि आत्मा की ओर से बीएसडीएम के तहत 30 युवा शिक्षित किसानों के एक बैच को वर्मी कंपोस्ट पर समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने बताया कि कौशल विकास मिशन के अंतर्गत वर्मी कंपोस्ट को स्वरोजगार का साधन माना गया है। इस प्रशिक्षण में युवा किसानों को जैविक खाद उत्पादन के प्रैक्टिकल और थ्योरी के बारे में जानकारी दी जाती है। साथ ही इसके व्यवसायिक उपयोग के बारे में जानकारी दी जाती है। उन्होंने बताया कि रासायनिक खाद के बढ़ते कुप्रभाव को देखते हुए इस पर रोक लगाने की जरूरत है। उन्होंने किसानों को जैविक खाद उत्पादन की अपील की है। साथ ही उन्होंने कहा कि जैविक खाद के उपयोग से फसल गुणवत्तापूर्ण होंगे और इस उत्पादन का किसानों को बाजार में अच्छा मूल्य मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि इस तरह से तैयार की गई खाद के बहुत सारे फायदे होते हैं। इससे खेती की भूमि पैदावार क्षमता भी बढ़ती है। जैविक खेती करने के लिए किसान 4 से 5 तरह के जैविक खाद बहुत ही कम लागत में तैयार कर सकता है। किसान अपनी खेती मे जैविक खाद का उपयोग करता है तो किसान को खेती में बहुत फायदे होते हैं। रासायनिक खाद के अधिक उपयोग से भूमि बंजर हो गई है तो भूमि को उपजाऊ बनाया जाता सकता है। जैविक खाद के प्रयोग से खेती से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती के द्वारा खेती मे सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली जैविक खाद है केंचुआ खाद। इस खाद को आसानी से तैयार किया सकता है। इस खाद को तैयार करने के लिए आपको पशुओं की पकी हुई गोबर खाद और दूसरी चीज पानी की आवश्यकता होती है। अंतिम आवश्यकता है वो है केंचुआ। इन तीनों चीजों की मदद से आसानी से घर पर ही जैविक खाद तैयार किया जा सकता है।
जानकार बताते हैं कि एक वर्गफुट मे केंचुआ खाद तैयार करने के लिए एक सो केंचुआ की आवश्यकता होती है। केंचुआ खाद को तैयार करने के लिए सबसे पहले छायादार जगह का चुनाव करें। इसके बाद आपको जमीन पर खेती करने के बाद बचे हुए चारे को बिछा देना है। अब चारे के ऊपर पशुओं की खाद की 6 से 7 इंच की परत बिछा देनी है। इसके बाद आपको केंचुआ को इस खाद पर छोड़ देना है। एक वर्गफुट जगह मे लगभग 100 केंचुआ को जरूर छोड़े। अंत मे बोरी व प्लास्टिक से पूरे खाद को ढक दे। इस खाद पर समय – समय पर पनी का छिड़काव करते रहें। जैविक खाद को तैयार करने के लिए दो तरह के केंचुआ को काम मे लिया जाता है। केंचुए को अगर गोबर के रूप में भोजन दिया जाए इसे खाने के बाद विघटित होकर बने नए उत्पाद वर्मी कम्पोस्ट होते हैं। गोबर के वर्मी कम्पोस्ट में बदल जाने के बाद इसमें बदबू नहीं आती है। इसमें मक्खियां और मच्छर भी नहीं पनपते हैं। इससे पर्यावरण में भी शुद्धि रहती है। केंचुआ को किसानों का मित्र कहा जाता है।
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