रविन्द्र तोदी
चल रही कलम शब्द-शब्द शब्द-शब्द
सशक्त हुं मैं
हृदय हो रहा मजबूत
मन थोड़ा विचलित है
तो क्या ।।
स्याही भी अब
न सुख पा रही
ना ही थम रही कलम है
चल रही कलम बस युं
शब्द-शब्द शब्द-शब्द ।।
कहता हूं रुक जा
खड़ी पाई बस दे दूं
शब्दों को थोड़ा
विराम तो दे दूं ।।
हठ पर उतरी है कलम
पैनी हो रही धार है
शब्द निकल रहे
स्पष्ट,बेबाक, बेफिक्र
शब्द निकल रहे
सहज,सरल, निश्च्छल ।।
अचंभित हुं मैं, भयाक्रांत भी
थिरक रही कलम आखिर
कैसे मेरे हाथों में
हृदय की बातें आखिर
कैसे उतर रही कागज पे।।
शब्द जो युं
निकल रहे
जैसे तलवार की धार
हिमाकत नहीं असत्य में
जो चीर सके
सत्येय शब्दों की धार ।।
शब्द निकल चुके बांणवत
असत्य भेद पर कर रहे प्रहार
शब्दों के बांण से
असत्य हो रहा धराशाई
लक्ष्य पथ पर
जीत को आतुर
सत्य प्रतित है।।
भयभीत हुं कलम से
भयभीत हुं शब्दों से
कलम अब रुक न जाए
शब्द कहीं भटक न जाए ।।
इजाजत पर जिनके
कागज पर
उतरती थी कलम
अब खुद कलम
मुझसे ही कहती हैं
स्याही नहीं सुख रही
पकड़न ना ही छूट रही
हुं अमर डर मत
सोच मत सोच मत
ले पकड़,ले चल,ले अब लिख
चल रही कलम
शब्द शब्द शब्द शब्द।।
तृतीय पुण्यतिथि 17/10/2022 पर मेरे पिता स्व:श्री ओमप्रकाश तोदी सर को शत् शत् नमन।
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