भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए साल भर में कईं व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं, महेश नवमी भी इनमें से एक है। ये पर्व हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 15 जून, शनिवार को मनाया जाएगा। वैसे तो महेश नवमी का पर्व सभी लोग मनाते हैं, लेकिन माहेश्वरी समाज इस उत्सव को विशेष रूप से मनाता है। मान्यता के अनुसार, इसी तिथि पर माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी। आगे जानिए महेश नवमी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त सहित पूरी डिटेल…
महेश नवमी 2024 शुभ मुहूर्त
- सुबह 07:25 से 09:06 तक
- दोपहर 12:27 से 02:08 तक
- दोपहर 02:08 से 03:48 तक
- दोपहर 03:48 से 05:29 तक
महेश नवमी पूजा विधि
- महेश नवमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल, फल, फूल और चावल लेकर इस मंत्र से व्रत का संकल्प लें- मम शिवप्रसाद प्राप्ति कामनया महेशनवमी-निमित्तं शिवपूजनं करिष्ये।
- इसके बाद घर में किसी साफ स्थान पर भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिम या चित्र स्थापित कर पूजा शुरू करें। सबसे पहले भगवान को कुमकुम से तिलक लगाएं और फूलों की माला पहनाएं।
- गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। अबीर, गुलाल, जनेऊ, सुपारी, पान फूल और बिल्वपत्र आदि से भगवान शिव-पार्वती की पूजा करें। पूजा के दौरान मन ही मन में ऊं महेश्वराय नम: मंत्र का उच्चारण करते रहें।
- इसके बाद इस प्रकार भगवान शिव से प्रार्थना करें-
जय नाथ कृपासिन्धोजय भक्तार्तिभंजन।
जय दुस्तरसंसार-सागरोत्तारणप्रभो॥
प्रसीदमें महाभाग संसारात्र्तस्यखिद्यत:।
सर्वपापक्षयंकृत्वारक्ष मां परमेश्वर॥
- इस प्रकार पूजा करने के बाद अंत में अपनी इच्छा अनुसार भगवान को भोग लगाएं और फिर आरती करें। इस प्रकार महेश नवमी पर शिवजी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
शिवजी की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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