गुवाहाटी। भगवती लडिया फाउंडेशन द्वारा लेखक अनिल बोरा द्वारा लिखित पुस्तक असमोर समाज जीवनोलोई मारवाड़ी असमिया होकोलोर अवदान नामक असमिया पुस्तक का विमोचन माछखुवा स्थित आईटीए सेंटर में किया गया। समारोह का शुभारंभ मां सरस्वती और भगवती लडिया के चित्र के आगे दीप प्रचलित करके किया गया। इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि असम साहित्य सभा के अध्यक्ष डॉ सूर्यकांत हजारिका, विशिष्ठ अतिथि प्रागज्योतिष महाविद्यालय के सेवा निवृत अध्यक्ष डॉ दयानंद पाठक, मारवाड़ी सम्मेलन के प्रांतीय अध्यक्ष कैलाश काबरा,वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर रवि, पुस्तक के लेखक अनिल बोरा, भगवती लड़िया फाउंडेशन के सचिव घनश्याम लडिया उपस्थित थे। कार्यक्रम संयोजक व संचालक संदीप चमडीया द्वारा भूपेन हजारिका के गीतों की पंक्तियों के साथ पुस्तक विमोचन कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
असम साहित्य सभा के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत हजारिका ने अनिल बोरा द्वारा रचित 'ओसोमोर सोमाज जीवोनोलै मारवाड़ी असमिया सोकोलोर अवदान' पुस्तक का विमोचन करने के बाद अपने संबोधन में कहा कि श्रीमंत शंकरदेव के पहले से ही विभिन्न स्थानों से विभिन्न जातियों के लोग असम में आते रहे हैं।इसी क्रम में नवरंग अग्रवाल का परिवार भी राजस्थान से असम आया और उनकी अगली पीढ़ियों ने असम को आगे बढ़ाने का काम किया। उन्होंने सुझाव दिया कि असमिया मारवाड़ी समाज के योगदान पर आधारित एक म्यूजियम खोला जाना चाहिए। अपने संबोधन में उन्होंने ज्योति प्रसाद अगरवाला, कमला प्रसाद अगरवाला, परमानंद अगरवाला, चंद्रप्रकाश अगरवाला से लेकर कपूर चंद जैन, सांवरमल सांगानेरिया, डॉ. श्यामसुंदर हरलालका के नामों का उल्लेख किया।समारोह के विशिष्ठ अतिथि डॉ.दयानंद पाठक ने आज के समय लिए उक्त पुस्तक को बहुत जरूरी बताया और कहा कि आज का मारवाड़ी समाज पूरी तरह से असमिया समाज के साथ घुलमिल गया है। उन्होंने मारवाड़ी समाज के योगदान पर शोध किए जाने की जरूरत बताते हुए कहा कि अगर हरिविलास अगरवाला ने श्रीमंत शंकरदेव द्वारा रचित 'कीर्तनघोषा' का प्रकाशन नहीं करवाया होता तो यह पुस्तक बाढ़ अथवा कीड़ों की भेंट चढ़ गई होती।उन्होंने ज्योति प्रसाद अग्रवाला जैसे रचनाकारों की कला-कृति को विश्व फलक तक ले जाने की भी बात की।उन्होंने भी अपने संबोधन में छगनलाल जैन, रामनिरंजन गोयनका, प्रसन्न लाल चौधरी, हीरालाल पटवारी, गोपाल जालान आदि के नामों का जिक्र किया।समारोह के अतिथि दैनिक पूर्वोदय के संपादक रविशंकर रवि ने अपने संबोधन में कहा कि अनिल बोरा द्वारा असमिया मारवाड़ी समाज पर लिखी गई पुस्तक का विमोचन असम साहित्य सभा के अध्यक्ष डॉ. हजारिका के कर कमलों द्वारा होना वह भी डॉ. दयानंद पाठक की उपस्थिति में, इससे अधिक सौहार्द्र की बात और क्या हो सकती है। श्री रवि ने कहा कि असमिया समाज में विखंडन की सोच नहीं है। हिंदी में भी असमिया शब्द और असम की खुशबू मिलती है। उन्होंने कहा कि असम के सभी स्कूल- कॉलेजों के पुस्तकालय में यह पुस्तक होनी चाहिए।पुस्तक लेखक श्री बोरा ने लेखन कार्य के दौरान आई कठिनाइयों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि असमिया साहित्य-संस्कृति की बुनियाद निर्माण में जिनका उल्लेखनीय योगदान है, उनमें अधिकतर मारवाड़ी हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि असमिया साहित्य में नवरंग अग्रवाल की पीढ़ी का जितना योगदान है, उतना किसी असमिया का भी नहीं है। अपने संबोधन के दौरान भरे गले से उन्होंने कहा कि जब कोई मारवाड़ियों को खदेड़ने की बात करता है तो वह दिल से व्यथित होते हैं। 'इसलिए मैंने यह पुस्तक लिखी है और मैं चाहता हूं कि यह पुस्तक मारवाड़ी से अधिक असमिया लोगों द्वारा पढ़ी जाए।
मंचासीन पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष कैलाश काबरा ने संक्षिप्त शब्दों में पुस्तक की विषय- वस्तु पर प्रकाश डाला और कहा कि असम में पैदा हुए मारवाड़ी यहीं मरेंगे और असम के लिए ही काम करते रहेंगे। इससे पूर्व भगवती लडिया फाउंडेशन के सचिव घनश्याम लडिया ने समारोह के उद्देश्यों की व्याख्या की। समारोह में गुवाहाटी के कई साहित्य प्रेमी, कवि और लेखक के अलावा समाज के संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
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