गुवाहाटी का एकमात्र विश्वकर्मा मंदिर गुवाहाटी महानगर की हृदय स्थली नीलांचल पहाड़ियों की तलहटी में बना हुआ है। हर वर्ष 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा के उपलक्ष्य में यहां महानगर के विभिन्न कोणों से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड पड़ती है। दो पहिया वाहन और चार पहिया वाहनों की यहां असमिया परंपरा के अनुसार पूजा भी की जाती है। यह मंदिर 1962 सन में प्रवासी राजस्थानी ठेकेदार महावीर प्रसाद धीरासरिया ने निर्माण कराया था। कुछ वर्षों पहले मंदिर का नवीनीकरण करवा के उन्होंने जयपुर से भगवान विश्वकर्मा की आदमकद मूर्ति मंगवा कर इसकी स्थापना भी कार्रवाई। मंदिर की जमीन का सत्वाधिकारी भावकांत शर्मा ने पूजा अर्चना की जिम्मेदारी संभाली जो आज तक जारी है। इस मंदिर के लिए एक किंवदंती प्रचलित है कि 1962 में जब ठेकेदार धारासरिया ने नीलांचल पहाड़ी की तलहटी से कामाख्या शक्तिपीठ तक पैदल यात्रियों का रास्ते का निर्माण प्रारंभ किया था तो उसे कई बधाओ का सामना करना पड़ रहा था। जिससे पथ निर्माण का कार्य आगे नहीं बढ़ रहा था। निर्माण कार्य में कभी बड़े-बड़े पत्थर आकर गिर जाते थे तो कभी जमीन खिसककर गिर जाती थी। तब ठेकेदार धीरासरिया ने बाबा विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा अर्चना कर के दोबारा कार्य प्रारंभ किया तो नीचे से ऊपर मां कामाख्या धाम शक्ति पीठ तक उनका यह कार्य पूरा हो गया। तब उन्होंने यहां एक मंदिर बनवा दिया था जो आज पूरे पूर्वोत्तर का एकमात्र मंदिर है।
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गुवाहाटी का एकमात्र विश्वकर्मा मंदिर: गुवाहाटी के नीलांचल पहाड़ियों में विराजमान
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