गुवाहाटी। छत्रीबाड़ी स्थित लायंस लोहिया ऑडिटोरियम में लेखिका अंजना जैन की तीन पुस्तक गुटुर गुं, प्याज के छिलके और मन मंथन का विमोचन मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध असमिया पत्रकार, लेखिका व साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त अनुराधा शर्मा पुजारी, विशिष्ठ अतिथि के रुप मे उद्योगपति व समाजसेवी कैलाश लोहिया, शिक्षाविद अशोक पंसारी, वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश शर्मा, सीनियर अकेडमी ऑफिसर रंजुमनी महंत के कर कमलो से किया गया। इससे पहले रमेश चंद्र जैन ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि अंजना जैन की तीन पुस्तक गुटर गू, दैनंदिन जीवन पर आधारित है और दूसरी पुस्तक प्याज के छिलके, मन मंथन हिंदी पुस्तक का असमिया अनुवाद जीवन की सच्चाई पर आधारित है। इस अवसर पर लेखिका अंजना जैन ने कहा कि जिंदगी है प्याज के छिलके की तरह है परतदार परत खुलती गई, खुशहाली आती गई या फिर परत खुलते गये सदमे लगते गए। प्याज के छिलके काव्य संग्रह है और गुटर गूं नामक कहानी और लेख संग्रह तथा मन मंथन में सच्चाई की बात मैंने उल्लेख की है। जिंदगी के धरातल पर चुभने वाले छोटे-छोटे कंकर रूपी समस्याएं और उनके समाधान को बहुत ही रोचक तरीकों से ढूंढने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। जो आपको हंसाएगी गुदगुदायेगी और कचोटेगी। मगर एक नई दिशा और एक सही दिशा देगी। उद्योगपति कैलाश लोहिया ने कहा कि अंजना जैन की तीन पुस्तक पुस्तक नहीं है बल्कि हमारे समाज को आईना दिखाने वाली एक कटु सत्य है। जिस तरह हमारे समाज पर पश्चिमी सभ्यता तेजी से हावी होती जा रही है उसके चलते हमारे संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। बच्चों को अपने संस्कार देकर उन्हें संस्कारित करना चाहिए। बच्चों को विदेशों में पढ़ाये मगर उन्हें अपने भारतीय संस्कृति से भी जोड़ रखें। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्र कार चंद्र प्रकाश शर्मा ने भी अपना सर गर्वित वक्तव्य दिया। मुख्य अतिथि अनुराधा शर्मा पुजारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि असम में गैर असमिया की जो चर्चा बार-बार होती है उस बारे में मैं अपने समाचार पत्र में उसका विरोध अपने लेख के माध्यम से किया था। मैंने अपने लेख में स्पष्ट रूप से लिखा था कि यदि कोई गैर असमिया असम में निवास करता है और असम के निर्माण में उसका कोई अवदान होता है चाहे वह सामान्य ही अवदान क्यों ना हो वह निवासी असमिया है। जो असमिया का असम में कोई अवदान नहीं है वह केवल निज जाति और भाषा के आधार को ही मानता है तो वह असमिया होकर भी असमिया नहीं है।असम में बसने वाले मरवाडीयों का असम के लिए काफी अवदान है। इसके अलावा बंगाली व बिहारी का भी काफी अवदान है। यह बातें मैंने अपने समाचार पत्र के लेख में उल्लेख भी की थी। इसके लिए मुझे कई यो ने सरहा और कईयो ने मुझे भला बुरा भी कहा। पुस्तक विमोचन समारोह में मंच पर किशोर जैन, गोपाल जालान जैसे कई लेखक, साहित्यकार और कवि भी उपस्थित थे।
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