प्रवेश मिश्र
राजस्थान दिवस वह ऐतिहासिक दिन है जब 1949 में छोटे-बड़े रजवाड़ों का एकीकरण कर राजस्थान राज्य का गठन हुआ था। भारत की आजादी के बाद राजपूताना की 19 रियासतों, तीन ठिकानों और एक प्रमुख जागीर को मिलाकर इसे 'वृहत्तर राजस्थान' का स्वरूप दिया गया। इस एकीकरण के बाद 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग के सुझाव के अनुसार, अजमेर, आबू, दिलवाड़ा और सिरोही को भी राजस्थान में शामिल किया गया। इसके बाद ही वर्तमान राजस्थान अस्तित्व में आया।
राजस्थान भारत का ऐसा राज्य है, जो अपने विशाल थार मरुस्थल, ऊंचे रेतीले टीलों और अरावली पर्वतमाला के लिए प्रसिद्ध है। यहां का जलवायु कठोर होते हुए भी इसकी सुंदरता और विविधता में कोई कमी नहीं है। राजस्थान अपनी ऐतिहासिक धरोहर, भव्य किलों, महलों और स्थापत्य कला के लिए विश्वभर में विख्यात है। जयपुर का आमेर किला, उदयपुर का सिटी पैलेस, जोधपुर का मेहरानगढ़ किला, जैसलमेर का सोनार किला और चित्तौड़ का दुर्ग यहां की समृद्ध विरासत का प्रतीक हैं।
राजस्थान की संस्कृति इसकी सबसे बड़ी पहचान है। यहां के लोकगीत, नृत्य और पहनावा इसकी जीवंतता को दर्शाते हैं। कालबेलिया, घूमर, चकरी और तेरहताली जैसे नृत्य रूप, लोककला के अद्भुत उदाहरण हैं। वहीं मांड, पपिहरा और पधारो म्हारे देस जैसे लोकगीत राजस्थान की माटी की सुगंध को दूर-दूर तक पहुंचाते हैं।
राजस्थान के मेले और उत्सव इसकी सांस्कृतिक समृद्धि को और भी भव्य बनाते हैं। पुष्कर मेला, डेजर्ट फेस्टिवल, तीज, गणगौर और मारवाड़ महोत्सव जैसे आयोजन यहां की जीवंत संस्कृति के प्रतीक हैं, जहां देश-विदेश से सैलानी जुटते हैं।
राजस्थान को वीरों की भूमि कहा जाता है। यहां के शूरवीर महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, दुर्गादास राठौड़ और गोरा-बादल जैसे योद्धाओं ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अद्वितीय बलिदान दिया। हल्दीघाटी का युद्ध, जहां महाराणा प्रताप ने मुगलों से लोहा लिया और चित्तौड़ की जौहर गाथा, जहां रानी पद्मिनी और सैकड़ों महिलाओं ने आत्मबलिदान दिया आज भी इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों में अमर हैं।
इतिहास में राजस्थान व्यापारिक मार्गों का प्रमुख केंद्र रहा है। प्राचीन काल में राजस्थान से होकर गुजरने वाला ‘सिल्क रूट’ व्यापारियों और कारवां के लिए प्रमुख मार्ग था। आज भी राजस्थान का व्यापारिक प्रभाव पूरे देश में है। राजस्थानी समुदाय अपनी व्यापारिक कुशलता और परिश्रम के लिए जाने जाते हैं।
असम में भी राजस्थान मूल के लोगों की एक मजबूत उपस्थिति है, जो प्रदेश के आर्थिक और सामाजिक विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं। व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और समाजसेवा के क्षेत्र में राजस्थानियों का योगदान सराहनीय है। गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, सिलचर, जोरहाट और अन्य क्षेत्रों में बसे मारवाड़ी और राजस्थानी समाज ने अपनी मेहनत और व्यापारिक कुशलता से असम की अर्थव्यवस्था में एक मजबूत स्थान बनाया है।
असम में राजस्थानियों ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी जीवंत रखा है। यहां तीज, गणगौर और दीपावली जैसे उत्सवों को परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। स्थानीय स्तर पर राजस्थानी समाज सामाजिक संगठनों और सेवा कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है, जिससे असम और राजस्थान के बीच सांस्कृतिक सेतु मजबूत हुआ है।
आज राजस्थान विकास और आधुनिकता की राह पर तेजी से अग्रसर है। जयपुर, उदयपुर, जोधपुर, कोटा और बीकानेर जैसे शहर औद्योगिक और पर्यटन केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं। प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी, खनन, कृषि और पर्यटन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
राजस्थान दिवस केवल ऐतिहासिक गौरवगान का दिन नहीं है, बल्कि यह अपने संस्कारों, परंपराओं और मूल्यों को याद कर उन्हें आगे बढ़ाने का संकल्प लेने का अवसर भी है। यह दिन हमें राजस्थान के वीरों के बलिदान, सांस्कृतिक वैभव और विकास की यात्रा को सम्मानित करने का अवसर देता है।
इस राजस्थान दिवस पर हम सब मिलकर अपनी विरासत को सहेजने, संस्कृति को संरक्षित करने और प्रदेश के विकास में योगदान देने का संकल्प लें।
"पधारो म्हारे देस!"
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