लखीमपुर से राजेश राठी और ओम प्रकाश तिवाड़ी की रिपोर्ट
बाल कल्याण समिति की प्रभावशीलता पर उठ रहे सवाल।
असम जातीयतावादी युवा परिषद ने की दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग।
लखीमपुर। लखीमपुर जिले से एक ऐसी दर्दनाक और शर्मनाक घटना सामने आई है जिसने मानवता को झकझोर कर रख दिया है। उत्तर लखीमपुर के शनि मंदिर परिसर में आज सुबह कुछ युवकों द्वारा तीन नाबालिग बच्चों को चोरी के संदेह में बंधक बनाकर पीटने का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। यह वीडियो केवल आंखें नहीं नम करता, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है – क्या हमारा समाज अब न्याय की जगह भीड़तंत्र और क्रूरता के हवाले हो गया है? घटना में कुछ युवकों ने स्वयं को कानून का रखवाला समझते हुए, बिना किसी प्रमाण या पुलिस को सूचित किए, तीन मासूमों को शनि मंदिर के भीतर पकड़कर हाथ-पैर बांधे और बेरहमी से पिटाई की। इस कृत्य की जितनी निंदा की जाए, कम है, क्योंकि यह न केवल बच्चों के संवैधानिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए भी एक करारी चोट है। पुलिस ने इस मामले में तत्परता दिखाते हुए दो आरोपियों – दुर्गेश सिंह (बिहार निवासी) और बिप्लव ठाकुर (टोंगला निवासी) – को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि अन्य आरोपियों की तलाश जारी है। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार, इस अमानवीय व्यवहार को अंजाम देने वालों के विरुद्ध कठोर कारवाई की जाएगी। इस घटना की तीव्र प्रतिक्रिया असम जातीयतावादी युवा परिषद ने दी है। परिषद की उत्तर लखीमपुर आंचलिक समिति ने लखीमपुर सदर थाने में विधिवत शिकायत दर्ज कराते हुए इस मामले में दोषियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की है। परिषद के अध्यक्ष मनोज कलिता ने तीव्र नाराज़गी जताते हुए कहा,“अगर किसी पर चोरी का संदेह है, तो कानून के दायरे में रहकर पुलिस को सूचना देना हर नागरिक का दायित्व है। किसी भी परिस्थिति में स्वयं निर्णय लेकर बच्चों के साथ हिंसा करना, न केवल बाल अधिकारों की अवहेलना है, बल्कि एक गंभीर अपराध भी है।”उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जिले में बाल कल्याण समिति (CWC) जैसी संस्थाएं ऐसे मामलों में कितनी सक्रिय हैं। जब कई बच्चे चोरी, नशे और भीख जैसी परिस्थितियों में धकेले जा रहे हैं, तब इन संस्थाओं की जवाबदेही और प्रभावशीलता पर सवाल उठना लाज़मी है। इस प्रकरण में सामाजिक प्रतिक्रिया भी दो भागों में बंटी हुई है। जहां एक ओर अधिकांश लोग इस क्रूर मॉरल पुलिसिंग की निंदा कर रहे हैं और इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मत है कि ये बच्चे नियमित रूप से नशा (डेंड्राइट) कर रहे थे और चोरी की नीयत से मंदिर परिसर में दाखिल हुए थे। ऐसे में भीड़ की प्रतिक्रिया को वे "स्वाभाविक आक्रोश" मानते हैं। हालांकि, किसी भी सूरत में यह स्वीकार्य नहीं हो सकता कि किसी को कानून हाथ में लेने का अधिकार हो। चाहे अपराधी कोई भी हो और आरोप कितने भी गंभीर क्यों न हों, भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को निष्पक्ष सुनवाई और मानव गरिमा का अधिकार देता है — विशेषकर नाबालिगों को। इस भयावह घटना ने प्रशासन और समाज दोनों को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है – क्या हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां न्याय व्यवस्था की जगह हिंसक भीड़ फैसले सुनाने लगी है? अब समय आ गया है कि सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करें और बच्चों के पुनर्वास, शिक्षा, नशामुक्ति और सुरक्षा के लिए प्रभावी योजनाओं को सक्रिय रूप से लागू करें। यही हमारे बच्चों के भविष्य और हमारे समाज की गरिमा के लिए सबसे आवश्यक है।
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