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हम सब एक हैं, एक मारवाड़ी

 


संपत मिश्र


हाल ही में असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने मारवाड़ी समाज के संदर्भ में कुछ बातों को रखा। उन्होंने कहा कि आप लोगों में एकता नहीं है। यह जैन है तो वह ओसवाल है। आप लोग इसी में व्यस्त रहते हो और एक व्यापारी दूसरे व्यापारी की खामियों की जानकारी देता है। उन्होंने कहा कि उन्हें यह भी मालूम है कि कौन कहाँ और किस प्रकार टैक्स चोरी कर रहा है।


यह वक्तव्य केवल आलोचना नहीं है। यह हमारे समाज के भीतर झाँकने का अवसर है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सच में इतने बंट चुके हैं कि हमारे सामाजिक और व्यावसायिक मूल्य अपनी ताक़त खोते जा रहे हैं? क्या हम जाति, गोत्र, वर्ग और पहचान की सीमाओं में खुद को इतना बाँट चुके हैं कि जब बात समाज के हित की आती है तो हमारी आवाज़ बिखर जाती है?


दुनिया के कई समुदायों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। जैसे यहूदी, पारसी, सिंधी, मराठी या तमिल व्यापारिक समाज जहाँ एकता एक मूल्य है और एक-दूसरे को ऊपर उठाना एक संस्कृति है। यही वह सोच है जो उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान देती है। वहीं हम अक्सर अपने ही लोगों की आलोचना में लगे रहते हैं जिससे हमारी सामूहिक छवि कमजोर होती है।


मुख्यमंत्री ने टैक्स चोरी का मुद्दा उठाया और यह कोई छोटी बात नहीं है। टैक्स देना हमारा कानूनी ही नहीं नैतिक कर्तव्य भी है। जब हम व्यापार में पारदर्शिता नहीं रखेंगे तो हमारे बच्चों को क्या मूल्य मिलेंगे? हमारा समाज तभी आदर्श बन सकता है जब हम अपने कर्तव्यों को उतनी ही गंभीरता से निभाएं जितनी निष्ठा से हम अपने अधिकारों की अपेक्षा करते हैं।


यह वक्तव्य कोई सामान्य बात नहीं है। यह एक दर्पण है, जिसमें हमें अपना बिखरा हुआ प्रतिबिंब दिखता है। रामायण में जब राम ने वानर सेना को संगठित किया तो कोई यह नहीं पूछ रहा था कि कौन ऋक्ष है, कौन वानर। सब राम के उद्देश्य में एकरूप हो गए। महाभारत में भी कृष्ण ने पांडवों को बार-बार एकता का संदेश दिया "जब तक तुम एक हो, तुम अजेय हो।"


विश्व इतिहास में भी देखिए, यहूदी समुदाय अपने वैश्विक स्तर के व्यापारिक नेटवर्क में आज भी सबसे संगठित और सहयोगी समुदायों में गिने जाते हैं। चीनी व्यापारिक समुदाय ने अफ्रीका से अमेरिका तक एक-दूसरे की सहायता से सामूहिक समृद्धि प्राप्त की है। वे कभी आपस में जातियों में नहीं बंटे, सिर्फ एक उद्देश्य में जुड़ते गए।


मुख्यमंत्री ने यह साझा किया कि कई बार शिकायतें खुद मारवाड़ी समाज के ही लोगों से आती हैं जैसे किसी ने जीएसटी में गड़बड़ी की या कर चोरी की। यह चिंताजनक है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


आज समय आ गया है कि हम केवल बातों में नहीं बल्कि व्यवहार में एकता दिखाएँ। मारवाड़ी समाज ने हमेशा देश के व्यापार, शिक्षा और सेवा में योगदान दिया है लेकिन इस योगदान की असली ताकत तभी सामने आएगी जब हम एकजुट रहेंगे। अगर हम यह तय कर लें कि हम सब एक हैं। न ओसवाल, न जैन, न माहेश्वरी, न ब्राह्मण बल्कि एक समर्पित और जिम्मेदार मारवाड़ी, तो आने वाले समय में कोई भी हमारी आलोचना नहीं, बल्कि हमारी मिसाल देगा।


यह अवसर है आत्ममंथन का, बदलाव का और समाज को एक नई दिशा देने का। आलोचना को आलोचना की तरह नहीं, सुधार के संकेत की तरह लीजिए और आइए एक नए संकल्प के साथ कहें: हम सब एक हैं, एक मारवाड़ी।

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