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महेश्वरी व दायमा समाज ने हर्षोल्लास के साथ अपने घरों में मनाया सातुड़ी तीज का त्यौहार

 


निखिल कुमार मुन्दड़ा 


होजाई। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी होजाई में कजली तीज का त्यौहार दायमा व महेश्वरी समाज ने हर्षोल्लास के साथ शनिवार सांय को मनाया । भादो महीने में मनाए जाने वाले इस त्यौहार को सातुड़ी तीज के नाम से जाना जाता है। सदियों से चले आ रहे इस त्यौहार की विशेषता धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी हुई है। इसमें परिवार के सभी सदस्यों के सुख, समृद्धि के साथ-साथ गांव देश में खुशहाली हेतु पूजा की जाती है। त्यौहार में नीम के वृक्ष का सबसे बड़ा महत्व है। पर्यावरण के लिए वृक्षों की अपनी भूमिका रहती है। इसीलिए नीम का वृक्ष को इसमें महत्व दिया गया है। पूजन हेतु चना, चावल, गेहूं अच्छी तरह से सिकाई कर उसका आटा बनाया जाता है एवं शुद्ध घी, चीनी मिलाकर लड्डू बनाए जाते हैं। इसमें स्वच्छता का पूरा ख्याल रखा जाता है। इस त्यौहार के दिन महिलाएं पूरे दिन निराहार रहती हैं। संध्या काल में कई घरों की महिलाएं एकत्रित होकर नीम वृक्ष की डाली को मिट्टी की तलाई बनाकर उसे रोप कर पूजा करती हैं। महिलाएं लाल पीली साड़ी पहने हाथों में मेहंदी लगाए अपने-अपने घरों से पूजन सामग्री के अलावा फल जिसमें आम, अनारस, नींबू, अमरुद, नाशपति आदि लेकर पूजा स्थान पर पहुंची। तत्पश्चात महिलाओं ने पूजन प्रारंभ किया इसमें दूध का विशेष महत्व है। नीम की डाली लगी तलाई को पानी व दूध से भर दिया जाता है। इसके बाद फलों को उसमें दिखाकर नीम को स्पर्श कराया गया। रोली,मोली का टीका लगाया गया। इस दौरान महिलाएं त्योहार से जुड़े गीत गा रही थी। जिसमें राजस्थान की संस्कृति की याद ताजा हो गई। पूजन समाप्ति के पश्चात बुजुर्ग महिलाओं ने त्यौहार से जुड़ी कहानी कहकर त्यौहार का महत्व बताया। पूजन समाप्ति के पश्चात उपस्थित महिलाओं ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दी। वही बुजुर्ग महिलाओं से आशीर्वाद लिया। साथी अपने-अपने घरों में आकर चंद्र उदय का इंतजार करने लगी जो हुआ उसके पश्चात व्रतधारी महिलाओं ने बड़ों से आशीर्वाद लिया। इसके बाद परिवार के सदस्य इकट्ठे होकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। महिलाओं को प्रसाद के समय में आंकड़े के पत्ते का विशेष महत्व दिया जाता है। उल्लेखयोग्य है यह तीज पर्व मौसम परिवर्तन से जुड़ा है।




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