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दिव्या ज्योति जागृती संस्थान ने गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम मनाया


गुवाहाटी। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, डिब्रुगढ़ शाखा द्वारा फैंसी बाजार, गुवाहाटी, असम में गुरु पूर्णिमा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। गुरुदेव आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी उषा भारती ने उपस्थित दर्शकों को एक प्रबुद्ध आध्यात्मिक गुरु की खोज करने के महत्व के बारे में समझाया जो एक व्यक्ति के आंतरिक मूल को प्रकाशित करते हैं व जीवन के अंतिम उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम होते हैं। जब तक हम वह दिव्य लौ जागृत नहीं करते, तब तक हमारी आध्यात्मिक साधनाएँ हमें अपने मन के भ्रम से परे नहीं ले जा सकती हैं। साध्वी जी ने ईश्वरीय ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) की महत्ता को विस्तार से चित्रित किया, जिसके माध्यम से हम ईश्वर से एकाकार हो सकते हैं। यह ज्ञान शिष्य को अज्ञानता से मुक्त करता है, जो आनंद और दिव्यता प्राप्ति में एक बड़ी बाधा है। ब्रह्मज्ञान द्वारा कुशल, प्रभावशाली, नैतिक मनुष्यों का निर्माण सम्भव हो पाता है। यह ब्रह्मज्ञान हमें हमारी आत्म शक्ति (उच्चतम स्तर) से जोड़ता है व जीवन के हर कदम पर मार्गदर्शन करते हुए, विचारों में स्पष्टता उत्पन्न कर श्रेष्ठ निर्णय लेने की शक्ति को सक्रिय करता है। 


साध्वी ममता भारती ने प्रवचनों में समझते हुए कहा कि गुरु पूर्णिमा एक शिष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। यह गुरु के प्रति प्रेम और कृतज्ञता प्रकट करने का दिन है। यह दिन गुरु और उनके शिष्यों के बीच शाश्वत बंधन को उजागर करता है। यह एक शिष्य के लिए अपने गुरु की पूजा करने और सतगुरु के प्रति अंतरतम और गहरी कृतज्ञता अर्पित करने का अवसर है। शिष्यों के लिए गुरु का जो महत्व है, उसे किसी भी चीज से नहीं मापा जा सकता, क्योंकि इस पूरे ब्रह्मांड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी तुलना शिष्यों के लिए गुरु के प्रेम से की जा सके। दूसरी ओर शिष्य केवल गुरु की कृपा का प्रत्युत्तर उन्हें आत्मिक कृतज्ञता अर्पित करके देने का प्रयास कर सकते हैं, वह भी तब जब गुरु स्वयं इसके लिए अवसर प्रदान करें। ऐसा ही एक शुभ अवसर गुरु पूर्णिमा के दिन आता है, जब गुरु शिष्यों को अपना प्यार दिखाने का दुर्लभ मौका देते हैं।


आदि गुरु शंकराचार्य ने कहा है- दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रह - हेतुकम्ध मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष-संश्रयः अर्थात् मनुष्य शरीर में जन्म, मोक्ष प्राप्ति की इच्छा और महापुरुषों का संग- यह तीनों अत्यंत दुर्लभ हैं और ईश्वर की कृपा से ही प्राप्त होते हैं। इस कृपा को मानव के जीवन में पूर्ण सद्गुरु प्रदान करते हैं वे मानवता को सत्य का मार्ग देकर जीवन जीने का सही तरीका बताते हैं वे मनुष्य को ज्ञान दीक्षा के समय ही अपने भीतर भगवान के प्रकाश रूप के साक्षात दर्शन कराते हैं। हम सभी बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे पूर्ण सतगुरु श्री आशुतोष महाराज जी की शरण मिली है। गुरु महाराज जी की असीम दया उनके प्रत्येक शिष्य पर हर पल बरस रही है। उनके ओजस्वी वचन और मार्गदर्शन हमारे जीवन के हर पथ को आलोकित कर रहे हैं। सतगुरु के मन में सदैव एक ही इच्छा रहती है कि उनका शिष्य श्रेष्ठ बने और उसके गुणों की समाज में पूजा हो। हमारे परम पूज्य गुरुदेव की भी यही इच्छा है कि उनके प्रत्येक शिष्य का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाए ताकि एक नए अलौकिक इतिहास का निर्माण हो सके। अंत में दिव्य गुरु की सुमंगल आरती हुई जिसके बाद सैकड़ों भक्तों ने जोर शोर से जयकारे लगाय गए।

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