नाहरलगुन। नाहरलगुन चातुर्मास रत गुरुमां ने आज दसलक्षण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म पर अपने प्रवचन के माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि दशलक्षण पर्व दस सीढीयों का पङाव है। कल हमने उत्तम क्षमा धर्म की पहली सीढी पर पांव रखकर शुरूवात की थी। आज हमारा पांव उत्तम मार्दव धर्म की दूसरी सीढी पर आया है। लेकिन यह मानना हमारी भूल होगी कि यह सीढी पहली सीढी की अनुपस्थिति में भी मिल सकती थी। दसों सीढीयों का एक सिलसिला है, अनुक्रम है, सब आपस में अनुबद्ध है। मार्दव का विकास क्षमा की पीठ पर होता है। जिस तरह क्रोध के नियमन में क्षमा का अस्तित्व है, ठीक वैसे ही अहंकार के निग्रह में मार्दव का आविर्भाव है। मैं कुछ हूं, कुछ ही नहीं अपितु बहुत कुछ हूं ऐसा दुर्विचार जब मन में आता है, तब उसे अहंकार के रूप में जाना जाता है। पूज्य गुरु मां ने कहा कि इस संसार में अनेक राजा, महाराजा और चक्रवर्ती केवल अपने अहंकार की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। रावण एक अत्यंत शक्तिशाली राजा होने के बावजूद आज भी अपने अहंकार के कारण ही निंदा और बदनामी का पात्र बना हुआ है। शक्तिशाली हिटलर को भी अपने अहंकार के कारण कोप भाजन बनना पड़ा। भगवान बाहुबली भी उत्पन्न अल्प अहंकार के कारण कई वर्षों तक केवलज्ञान प्राप्त करने में असफल रहे। पूज्य गुरु मां ने कहा कि इस संसार में "तुम्हारा क्या है?" यह संपत्ति, ये संबंध, ये शरीर... कुछ भी तुम्हारा नहीं है। फिर अहंकार क्यों? सब एक भ्रम है, और यह भ्रम ही अहंकार को जन्म देता है। जब समझ आ जाए कि जो पास है, वो भी तुम्हारा नहीं है, तब अहंकार खत्म हो जाएगा।
पूज्य गुरु मां ने कहा उत्तम मार्दव धर्म का मतलब है अहंकार को दूर करके विनम्रता हासिल करना। जिस प्रकार नींव के अभाव में भवन का निर्माण, जड़ों के अभाव में वृक्ष का अस्तित्व, बादलों के अभाव में वर्षा का होना असम्भव है, उसी प्रकार विनम्रता के अभाव में मार्दव धर्म और सम्यक दर्शन का जन्म असंभव है। सरल शब्दों में मार्दव अहंकार का विपर्यय है। जब व्यक्ति में से 'मैं' की भावना निष्कासित होने लगती है, तब उसके भीतर विनयशीलता के स्त्रोत खुलने लगते हैं। अतः अहंकार को छोड़ मार्दव को अपनाएं, कल्याण निश्चित है। यह प्रेस विज्ञप्ति अरूणमय पुष्प प्रमुख वर्षायोग समिति, नाहरलगुन द्वारा दी गई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें