गुवाहाटी से खोया बसंत, अनजान शहरों की भटकन और संघर्ष के बाद कामाख्या स्टेशन पर मिला, परिवार की मन्नतें लाई रंग
यह कहानी गुवाहाटी के बसंत जम्मड़ की है। 8 अक्टूबर 2024 की सुबह, जैसे ही सूरज उगा, बसंत गुवाहाटी से गायब हो गया। उस दिन से लेकर अगले 9 दिन तक, उसके परिवार की दुनिया जैसे थम सी गई थी। कोई नहीं जानता था कि वह कहां है, किस हाल में है। परिवार ने हर पल उसके लिए दुआ की, उसकी सलामती की कामना की।
बसंत, जो गुवाहाटी से लापता था, दरअसल अपने घर का पता और फोन नंबर भूल गया था। वह ट्रेन से अनजाने में दीमापुर चला गया। वहां से वह एक ट्रेन में चढ़कर न्यू अलीपुर द्वार तक पहुंचा, लेकिन बिना टिकट होने की वजह से उसे स्टेशन पर उतार दिया गया। पर उसकी किस्मत उसे और भी लंबी यात्रा पर ले जा रही थी।
बसंत, जो अनजान और डर से भरा हुआ था, नॉर्थ ईस्ट ट्रेन में चढ़ा। उस ट्रेन में कुछ लोग मिले—विकास सिंह चौहान, अनिल कुमार यादव, गोविंद कुमार मंडल और प्रमोद कुमार मंडल। उन्होंने उसकी हालत और कहानी सुनी, और उसकी मदद करने का निर्णय लिया। अनिल कुमार यादव ने उसे काम देने का प्रस्ताव दिया, ताकि वह अपनी जिन्दगी फिर से शुरू कर सके। पर शायद उसके परिवार की दुआएं रंग ला रही थीं। नियति ने उसके लिए कुछ और ही तय किया था।
कामाख्या स्टेशन से कुछ घंटे पहले, बसंत को अचानक अपने पिता का नंबर याद आ गया। उसकी आंखों में आशा की चमक लौट आई। उसने तुरंत विकास सिंह चौहान को वह नंबर दिया। फोन लगते ही, दूसरी ओर बसंत के पिता की आवाज आई, जिसे सुनकर सबकी आंखें नम हो गईं। अवकाश जम्मड़ को जब यह खबर मिली, तो वह तुरंत कामाख्या रेलवे स्टेशन पहुंचे।
वह दृश्य अविस्मरणीय था। 9 दिन की चिंता और बेबसी के बाद, आखिरकार बसंत अपने परिवार के पास सुरक्षित लौट आया। वशिष्ठ पुलिस स्टेशन में पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी गई, और फिर बसंत को घर लाया गया।
आज बसंत अपने परिवार के साथ है, और यह सिर्फ उसकी हिम्मत और उसके परिवार की अटूट दुआओं का नतीजा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें