दिल्ली चुनाव 2025: क्यों हारी ‘आप’? केजरीवाल का करिश्मा फीका क्यों पड़ा? - Rise Plus

NEWS

Rise Plus

असम का सबसे सक्रिय हिंदी डिजिटल मीडिया


Post Top Ad

दिल्ली चुनाव 2025: क्यों हारी ‘आप’? केजरीवाल का करिश्मा फीका क्यों पड़ा?

 


प्रवेश मिश्र


दिल्ली की राजनीति में इस बार जो भूचाल आया, उसने आम आदमी पार्टी (आप) की मजबूत किलेबंदी को हिला दिया। 2015 और 2020 में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली आप 2025 में सत्ता से बाहर हो गई। भाजपा ने 48 सीटों के साथ 27 साल बाद दिल्ली की गद्दी पर वापसी की, जबकि ‘आप’ सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि अरविंद केजरीवाल, जिनकी नीतियां कभी दिल्ली के मतदाताओं को लुभाती थीं, अब उन्हीं का भरोसा खो बैठे? आइए जानते हैं इस हार के पीछे की बड़ी वजहें।


भ्रष्टाचार का दाग

कभी ‘ईमानदारी’ का चेहरा माने जाने वाले अरविंद केजरीवाल की पार्टी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। शराब नीति घोटाले में मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी ने पार्टी की छवि को भारी नुकसान पहुंचाया। जनता के बीच यह संदेश गया कि ‘आप’ भी बाकी पारंपरिक पार्टियों की तरह सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार से अछूती नहीं रही।


केजरीवाल पर कानूनी शिकंजा

चुनाव से ठीक पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) और CBI की जांचों ने अरविंद केजरीवाल को घेर लिया। भाजपा ने इसे नैतिकता बनाम भ्रष्टाचार की लड़ाई बना दिया, जिससे मतदाताओं में विश्वास की कमी हुई। विरोधियों ने इसे ‘आप’ के पतन की शुरुआत करार दिया।


भाजपा का मास्टरस्ट्रोक

भाजपा ने इस चुनाव में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। राम मंदिर के उद्घाटन और हिंदू वोटरों को साधने की रणनीति ने भाजपा को अप्रत्याशित समर्थन दिलाया। वहीं, ‘आप’ का फोकस पारंपरिक वोट बैंक पर रहा, लेकिन इस बार जनता का मूड बदल चुका था।


फ्री सुविधाओं की राजनीति फेल?

दिल्ली में ‘फ्री बिजली, पानी और बस यात्रा’ जैसे वादे 2015 और 2020 में हिट साबित हुए थे, लेकिन इस बार मतदाताओं ने शायद इन वादों की ‘एक्सपायरी डेट’ देख ली। भाजपा ने फ्री योजनाओं से आगे बढ़कर विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रशासनिक सुधारों पर बात की, जिससे जनता का रुझान बदला।


केंद्र से टकराव का उलटा असर

एलजी और केंद्र सरकार के साथ ‘आप’ का लगातार टकराव जनता को पसंद नहीं आया। बार-बार यह कहना कि दिल्ली सरकार के हाथ में कोई शक्ति नहीं, एक हद तक मतदाताओं को प्रभावित कर सकता था, लेकिन बार-बार यह राग अलापना जनता को परेशान करने लगा। उन्होंने इस टकराव की राजनीति को नकारते हुए भाजपा को मौका देने का फैसला किया।


क्या यह ‘आप’ के अंत की शुरुआत है?

इस चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि दिल्ली की जनता अब नई उम्मीदों के साथ आगे बढ़ना चाहती है। ‘आप’ को अगर अपनी खोई जमीन वापस पानी है, तो उसे आत्ममंथन करना होगा, रणनीतियां बदलनी होंगी और अपनी छवि को फिर से मजबूत करना होगा। वरना, यह हार सिर्फ एक झटका नहीं, बल्कि ‘आप’ के भविष्य के लिए एक बड़ा सवाल बन सकती है!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

नियमित रूप से WhatsApp पर हमारी खबर प्राप्त करने के लिए दिए गए 'SUBSCRIBE' बटन पर क्लिक करें