मुख्य संपादक, राइज प्लस
कल गुवाहाटी में विप्र फाउंडेशन द्वारा आयोजित छात्र सम्मान समारोह में शामिल होने का अवसर मिला। पत्रकारिता के दो दशकों में मैंने कई संगठनों के ऐसे कार्यक्रमों में भाग लिया है लेकिन यह आयोजन कुछ अलग था।
यह केवल छात्रों को सम्मानित करने का अवसर नहीं था बल्कि उन्हें भविष्य के लिए प्रेरित करने का भी मंच बना। वक्ताओं ने केवल प्रशंसा की औपचारिकता नहीं निभाई बल्कि छात्रों को जीवन के प्रति नई दृष्टि देने की कोशिश की।
अनन्या चैतन्य जी का प्रेरणादायक संबोधन इस बात का प्रमाण था कि केवल अंक नहीं, मानसिक दृष्टिकोण और आत्मबल ही सफलता की असली कुंजी हैं। उन्होंने छात्रों को भीतर की शक्ति पहचानने और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया।
वहीं राहुल शर्मा ने एक रोचक उदाहरण से समझाया कि “पैर उतने ही फैलाने चाहिए जितनी बड़ी चादर हो”। यह पुरानी कहावत अब बदलने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी चादर बड़ी करनी होगी, अपने सपनों और क्षमताओं को सीमित नहीं करना चाहिए। यह सोच आज के युवाओं के लिए अत्यंत आवश्यक है। पुरानी सीमाओं को तोड़कर नई राह बनाना।
भारत की परंपरा में छात्रों को प्रेरित करना और समाज निर्माण की भूमिका निभाना एक प्राचीन परंपरा रही है। चाणक्य ने जब चंद्रगुप्त मौर्य को एक सामान्य बालक से सम्राट बनने की राह दिखाई, तब उन्होंने केवल एक राजा नहीं, बल्कि एक नीति-समृद्ध समाज का निर्माण किया। इसी तरह, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को केवल युद्ध के लिए नहीं, बल्कि कर्तव्य, धर्म और आत्म-प्रेरणा का पाठ पढ़ाया। उनका उपदेश 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' आज भी प्रत्येक युवा को यह सिखाता है कि कर्म में ही सफलता का बीज छिपा है।
सम्मान सत्र के साथ-साथ यह कार्यक्रम एक प्रेरणादायक मोटिवेशन सत्र भी रहा, जिसमें विशेष रूप से कम अंक लेकर उत्तीर्ण होने वाले छात्रों को निराश न होने की सीख दी गई और उन्हें आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की दिशा दिखाई गई। मुख्य अतिथि और वक्ता ने भी अपने विचारों के माध्यम से ऐसे छात्रों का उत्साहवर्धन किया और यह संदेश दिया कि अंक ही सफलता का एकमात्र मापदंड नहीं हैं। कार्यक्रम के दौरान जब छात्रों को प्रशस्ति पत्र और प्रमाण पत्र प्रदान किए गए, तब उनकी उपलब्धियों और संघर्षों का भी उल्लेख किया गया, जिससे उन्हें वास्तविक सम्मान का अनुभव हुआ। यह आयोजन महज़ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाला प्रयास था, जो सामाजिक संस्थाओं की विश्वसनीयता और प्रभाव को भी सुदृढ़ करता है।
आज ऐसे आयोजनों में जब मंच से ये संदेश आते हैं कि हम पुरानी सीमाओं को तोड़ें और भविष्य का निर्माण करें, तो यह केवल एक विचार नहीं होता बल्कि हमारी ऐतिहासिक चेतना और विरासत की पुनरावृत्ति होती है। यह आयोजन हमें यह सिखाता है कि छात्रों का सम्मान केवल एक पल की उपलब्धि का जश्न नहीं, बल्कि उन्हें भविष्य के लिए मानसिक रूप से तैयार करने की जिम्मेदारी भी है।
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