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अंबुबाची मेला: आस्था, परंपरा और जनसंस्कृति का अद्भुत संगम

 


संपत मिश्र 


जब भी जून का महीना आता है, गुवाहाटी की नीलाचल पहाड़ियों पर एक अलग ही चहल-पहल दिखने लगती है। हवाओं में भक्ति की गूंज होती है, सड़कों पर श्रद्धालुओं की कतारें और आसमान में घंटियों की गूंज। यह संकेत होता है कि मां कामाख्या का अंबुबाची मेला फिर एक बार हमें अपनी ओर बुला रहा है।


मैं पिछले 35 वर्षों से गुवाहाटी में रह रहा हूँ और मैंने हर वर्ष अंबुबाची मेले में मां कामाख्या के दर्शन किए हैं। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि मेरे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। हर वर्ष यह मेला मुझे नई ऊर्जा, नई आस्था और अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर देता है।


कामाख्या मंदिर का अंबुबाची मेला भारत के उन पर्वों में से है, जो नारी शक्ति, प्रकृति और तांत्रिक परंपरा का सम्मान करता है। यह पर्व इस मान्यता पर आधारित है कि इन दिनों मां कामाख्या "ऋतुमती" होती हैं। यानी उन्हें रजस्वला माना जाता है। मंदिर के पट तीन दिन के लिए बंद हो जाते हैं और फिर चौथे दिन 'महापर्व स्नान' के साथ पुनः खुलते हैं। यही वह क्षण होता है जब लाखों श्रद्धालु मां के एक झलक के लिए उमड़ पड़ते हैं।


यह मेला केवल तांत्रिकों, साधकों और संतों का केंद्र नहीं है, बल्कि यह असम की लोकसंस्कृति, उसकी विविधता और प्रशासनिक प्रबंधन की परीक्षा भी बन चुका है। इस वर्ष भी उम्मीद है कि 10 लाख से अधिक श्रद्धालु देश-विदेश से यहां पहुंचेंगे। मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-संध्या, योग शिविर, और असमिया भोजन के साथ लोककला का भी अद्भुत संगम देखने को मिलता है।


22 जून से शुरू होकर 26 जून तक चलने वाले इस मेले को लेकर मंदिर परिसर और पूरे नीलाचल पहाड़ी क्षेत्र में तैयारियाँ जोरों पर हैं। इस वर्ष प्रशासन द्वारा डिजिटल क्यू सिस्टम, हेल्प डेस्क, अस्थायी आश्रय, चिकित्सा शिविर और महिला सहायता केंद्रों की व्यवस्था की जा रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अब आस्था के साथ स्मार्ट मैनेजमेंट की दिशा में भी गुवाहाटी एक उदाहरण बन रहा है।


कामरूप (मेट्रो) के उपायुक्त और उनकी टीम इस आयोजन को न केवल सुरक्षित, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल और सुगम बनाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।


अब समय है कि हम इस मेले को केवल देखने या श्रद्धा प्रकट करने तक सीमित न रखें, बल्कि इसे सामाजिक और सांस्कृतिक उत्तरदायित्व के रूप में भी देखें। साफ-सफाई, सहयोग, महिला सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव जैसे मुद्दों पर हमारी सतर्कता ही इस मेले को आने वाले वर्षों में और भी सशक्त बना सकती है।


अंबुबाची मेला मेरे लिए एक वार्षिक तीर्थ है, एक आत्मिक यात्रा है, और एक आत्मचिंतन का अवसर है। जब-जब मैं कामाख्या धाम की सीढ़ियां चढ़ता हूँ, मुझे केवल मां का आशीर्वाद नहीं, बल्कि जीवन की दिशा भी मिलती है।

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