गुवाहाटी। व्यासपीठ पर आसिन पुज्य महंत भरत शरण जी महाराज ने दुसरे दिवस की कथा में प्रवेश करवाते हुए बताया कि भगवान शिव की कृपा से गोस्वामीजी ने सरल और सहज रूप से जन जन के मानस में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जीवन पर आधारित लिलाओं का वर्णन करते हुए श्रीरामचरितमानस की रचना महाकाव्य के रूप में की। उन्होंने इसे 1631 ईस्वी में रामनवमी के दिन अयोध्या में लिखना शुरू किया, और इसे पूरा करने में लगभग दो वर्ष सात महीने और 26 दिन का समय लगाया।
तुलसीदास जी ने पहले संस्कृत में लिखने का प्रयास किया, सात दिनों तक दिन में लिखते और रात में मिटाते रहे, जिसके बाद उन्हें भगवान शिव और पार्वती ने दर्शन दिए और अवधि में लिखने का सुझाव दिया। इसके बाद तुलसीदास जी ने इसे अवधि भाषा में लिखा, जो उस समय की आम बोलचाल की भाषा थी, ताकि इसे अधिक से अधिक लोग समझ सकें। जब रामचरितमानस काशी पहुँची, तो विद्वानों ने इसे गाँव की भाषा में होने के कारण स्वीकार करने से इनकार कर दिया। तुलसीदास जी ने इसे भगवान विश्वनाथ के मंदिर में रखा और निर्णय के लिए भगवान पर छोड़ दिया। सुबह मंदिर के कपाट खुलने पर, रामचरितमानस सबसे ऊपर था और उस पर "सत्यम शिवम सुंदरम" लिखा हुआ था, जिससे विद्वानों ने इसे स्वीकार कर लिया। श्रीरामचरितमानस का शुभारंभ शिव एवं पार्वती के प्रसंग से होने के कारण आज महाराज जी शिव पार्वती के चरित्र का गुणगान करते हुए शिव विवाह की लिला का विस्तार से निर्मल प्रबल प्रवाह बनाते हुए भक्ति रस से सराबोर किया। कथा विश्राम से पूर्व शिव पार्वती की अद्भुत झांकी प्रस्तुत की गई। जिसमें भगवान की महाआरती में अंशग्रहण करते हुए माहेश्वरी सभा अध्यक्ष सीताराम बिहानी ने जुगल जोड़ी का माल्यार्पण कर वंदना की। महाआरती में अंशग्रहण करते हुए रामस्वरूप लखोटिया, विष्णु बिन्नानी, सोहनलाल चांडक, श्याम करवा, श्याम पारिक, शिवरतन सोमानी ने महाराज जी से आशिर्वाद ग्रहण किया। माहेश्वरी सभा की और से नारायण गट्टाणी ने बताया कि कल की कथा में भगवान श्रीराम का प्राकट्य होगा, इसके लिए सभी भक्त जनों से श्रीराम जन्मोत्सव में बढ़ चढ़ कर अंशग्रहण कर प्रभु लिला का आनंद उठाने का अनुरोध किया।
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