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सपनों की उड़ान: सरुपथार की बेटियाँ बनीं शिक्षा और सशक्तिकरण की मिसाल

 


संपत मिश्र

मुख्य संपादक, राइज प्लस 


भारतीय समाज में सदियों से बेटियों को सीमित दायरों में बांधने की प्रवृत्ति रही है। एक समय था जब लड़कियों की शिक्षा को लेकर जागरूकता का अभाव था और बेटियों के सपनों को परिवार और समाज की रूढ़ियों में कैद कर दिया जाता था। लेकिन बदलते समय के साथ देश में सोच बदली है और इसी सोच का परिणाम हैं सरुपथार की ये दो बेटियाँ डॉ. रितिका अग्रवाल और डॉ. कृतिका अग्रवाल जिन्होंने साबित कर दिया कि अगर बेटियों को समान अवसर और उचित मार्गदर्शन मिले तो वे हर क्षेत्र में बुलंदियों को छू सकती हैं।


डॉ. रितिका अग्रवाल को डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय द्वारा “भारत के केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का विनिवेश: तेल और प्राकृतिक गैस उद्योग पर एक अध्ययन” विषय पर शोध के लिए डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (पीएचडी) की उपाधि प्रदान की गई है। उन्होंने सेंटर फॉर मैनेजमेंट स्टडीज के प्रोफेसर डॉ. प्रतिम बरुआ के मार्गदर्शन में यह महत्वपूर्ण शोध कार्य पूरा किया और वर्तमान में जोरहाट इंजीनियरिंग कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में ज्ञान की रोशनी बांट रही हैं।


उनकी बड़ी बहन डॉ. कृतिका अग्रवाल ने “1991 से भारत में विदेशी मुद्रा भंडार की अस्थिरता, विशेष रूप से चुनिंदा संकट काल के संदर्भ में” विषय पर शोध कर डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि अर्जित की। उन्होंने वाणिज्य विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जुटीमाला बोरा के निर्देशन में अपने शोध कार्य को अंजाम दिया और वर्तमान में मरियानी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।


राजू अग्रवाल और सरिता अग्रवाल की ये दोनों पुत्रियाँ इस बात का सजीव प्रमाण हैं कि बेटियों में अपार क्षमता होती है जो सही मार्गदर्शन, शिक्षा और प्रोत्साहन से समाज को नई दिशा दे सकती हैं। शिक्षा ही वह शक्ति है जो महिलाओं को आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और आत्मविश्वास प्रदान करती है।


इतिहास साक्षी है कि जब भी समाज ने बेटियों को आगे बढ़ने का अवसर दिया, उन्होंने हर क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर कल्पना चावला और पीवी सिंधु तक हर युग में बेटियों ने न केवल अपने परिवारों का नाम रोशन किया है, बल्कि देश के लिए गर्व का कारण बनी हैं।


आज जब भारत ‘नया भारत’ बनने की ओर अग्रसर है, बेटियों की शिक्षा और सशक्तिकरण इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ’ जैसे अभियानों के पीछे यही सोच है कि हर लड़की को समान अवसर मिले, हर लड़की के सपनों को उड़ान मिले।


सरुपथार की डॉ. रितिका और डॉ. कृतिका का यह अद्भुत सफर हर उस परिवार के लिए प्रेरणा है जो बेटियों को बोझ नहीं बल्कि अवसर के रूप में देखता है। यह केवल दो व्यक्तियों की कहानी नहीं है, यह उस सामाजिक परिवर्तन की कहानी है जो भारत के हर गांव, हर शहर और हर दिल में दस्तक दे रहा है।


समाज को चाहिए कि वह ऐसी कहानियों को अधिक से अधिक साझा करे, ताकि हर बेटी के भीतर यह विश्वास जगे कि उसकी काबिलियत और उसके सपनों की कोई सीमा नहीं है। जब बेटियाँ आगे बढ़ती हैं, तब सचमुच पूरा देश आगे बढ़ता है।

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