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असम की श्रद्धा से राजस्थान में जागेगा लाचित बोरफूकन का यश!


संपत मिश्र 


एकता, सम्मान और इतिहास को जोड़ने वाली एक अनूठी पहल


देश की सांस्कृतिक एकता और वीरता के प्रतीक महान सेनानायक वीर लाचित बोरफूकन की गाथा अब केवल असम तक सीमित नहीं रहेगी। राजस्थान फाउंडेशन असम एवं नॉर्थईस्ट चैप्टर द्वारा शुरू की गई एक ऐतिहासिक पहल के तहत अब जयपुर और कोटा में लाचित बोरफूकन की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। यह पहल न केवल राष्ट्रीय एकता को सशक्त बनाएगी, बल्कि एक ऐसे वीर पुरुष की गौरवगाथा को देश के कोने-कोने तक पहुँचाने का कार्य करेगी, जिन्होंने मुगल आक्रांताओं के विरुद्ध अपने प्राणों की आहुति देते हुए असम की मिट्टी की रक्षा की थी।


लाचित बोरफूकन 17वीं शताब्दी के एक अद्भुत योद्धा और रणनीतिकार थे, जिन्होंने 1671 में सरायघाट की लड़ाई में मुगलों को पराजित किया था। वे असम के अहोम साम्राज्य के सेनापति थे, और उनकी नेतृत्व क्षमता, राष्ट्रप्रेम और बलिदान आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। आज जबकि भारत अपनी साझा सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की ओर बढ़ रहा है, लाचित बोरफूकन जैसे नायकों की स्मृति को राष्ट्रीय पटल पर लाना समय की माँग बन चुकी है।राजस्थान फाउंडेशन असम एवं नॉर्थईस्ट चैप्टर द्वारा प्रस्तावित इस योजना के अंतर्गत राजस्थान के दो प्रमुख शहरों जयपुर (राज्य की राजधानी) और कोटा (शिक्षा का प्रमुख केंद्र) में वीर लाचित बोरफूकन की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। यह प्रतिमाएँ न केवल श्रद्धांजलि के रूप में होंगी, बल्कि यह भारत की विविधता में एकता और सांस्कृतिक एकीकरण का प्रतीक बनेंगी। इस कार्य के लिए असम सरकार, राजस्थान सरकार, और स्थानीय समाज का सहयोग लिया जा रहा है। राजस्थान सरकार के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने इस अभियान को अपना पूर्ण समर्थन दिया है। वे स्वयं एक राष्ट्रभक्त और स्पष्ट सोच रखने वाले नेता हैं, जो देश की युवा पीढ़ी को अपने इतिहास से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

लाचित बोरफूकन की गाथा को स्कूल पाठ्यक्रम में भी शामिल करने का प्रयास राजस्थान फाउंडेशन नॉर्थ ईस्ट चैप्टर द्वारा किया जा रहा है। इस पहल का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि लाचित बोरफूकन की वीरगाथा को राजस्थान के विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव भी रखा गया है। शिक्षा मंत्री दिलावर ने आश्वासन दिया है कि इसके लिए केंद्र सरकार को पत्र भेजा जाएगा और पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की प्रक्रिया शीघ्र आरंभ की जाएगी।यह प्रयास केवल एक मूर्ति स्थापना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जनसहयोग से राष्ट्र की एकता, परस्पर सम्मान और साझा इतिहास को जाग्रत करने की एक सशक्त कोशिश है। इस अभियान में रतन शर्मा एवं उनकी कार्यकारिणी राजस्थान फाउंडेशन, असम एवं नॉर्थईस्ट चैप्टर सक्रिय रूप से जुटे हुए हैं और देश के विभिन्न हिस्सों से समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। यह पहल एक नए भारत की कहानी कहती है जहाँ असम की वीरता और राजस्थान की संस्कृति एक साथ आकर उस इतिहास को पुनः जीवित करते हैं, जिसे जानना और मानना हर भारतीय का कर्तव्य है। लाचित बोरफूकन की प्रतिमा भारत के भावी पीढ़ियों को यह संदेश देगी कि देश की रक्षा, एकता और सम्मान के लिए साहस, बलिदान और दृढ़ संकल्प ही सच्चा मार्ग है। भारत की जनता को यह मालूम होगा कि लाचित बोरफूकन ने देश के लिए अपने मामा की बली यह कहकर ले ली थी कि देश से मामा बड़ा नहीं है। इस संदर्भ में प्राप्त तथ्यों के अनुसार मुगल सेना को रोकने के लिए लाचित बोरफूकन ने सेनापति के रूप में अपने मामा को यह आदेश दिया था कि रातों-रात ब्रह्मपुत्र नद के सराईघाट पर एक पुल को तैयार किया जाए ताकि आहोम सेना उस पुल से ब्रह्मपुत्र को पार कर आगे बढ़कर मुगलों की सेना को असम में प्रवेश करने से रोक सके। लेकिन मामा को रात्रि मे पुल निर्माण करते समय नींद आ गई थी। लाचित बोरफूकन जब पुल के निर्माण कार्य का अवलोकन करने पहुंचा और अपने मामा को निद्रा में पाया तो उसे क्रोध आ गया और उसने तलवार असमिया में जिसे हैंगडांग कहते हैं उसे निकाल कर अपने मामा का सिर धड से अलग करते हुए यह कहा कि देश से मामा बड़ा नहीं है। फिर सैनिकों ने रातों-रात पुल को तैयार किया। जिसके परिणाम स्वरुप लाचित बोरफूकन की सेना ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए मुगल सेना को असम में प्रवेश करने से रोका। यही सराईघाट का स्थान गुवाहाटी नगर के बीचों बीच मिनी राजस्थान कहा जाने वाला फैंसी बाजार घाट के नाम से जाना जाता था। असम में भाजपा की सरकार के आते ही लाचित बोरफूकन को सम्मान देते हुए फैंसी बाजार घाट को लाचित घाट का नाम देते हुए विशाल प्रतिमा की स्थापना स्मृति चिन्ह के स्वरूप की। जो ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करती है।

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