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परिचय: श्रीमद् देवीभागवत कथा वाचक परम श्रद्धेय आचार्य श्री विजय प्रकाश जी महाराज


शिलांग से सुशील दाधीच

"अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। एतद्धि दुर्लभतरं लोके जनम यदीदृशम्।।" (गीता,६/४२)

परम पूज्य आचार्य श्री विजय प्रकाश जी महाराज के जीवन मे यह भगवद्वाक्य अक्षरशः सार्थक हुआ। महाराज श्री का जन्म विक्रम संवत् 2037 ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी, मंगलवार दिनांक 17-06-1980 को देवनदी गोदावरी के तट पर स्थित मंचरियाल (आन्ध्रप्रदेश) नामक गांव में पंडित श्री गोविंद प्रसाद जी तिवारी की धर्मपत्नी श्रीमती विमला देवी की तृतीय संतान के रूप में सूर्योदय वेला में हुआ। आप का बाल्यकाल आपके मौसाजी पंडित श्री चतुर्भुज जी मिश्रा एवं मौसीजी किरणा बाई व नानीजी सुवाबाई के संरक्षण में व्यतीत हुआ। पंडित श्री चतुर्भुज जी अपने आप में सिद्धांतपूर्ण एवं भगवद्भक्तिपूर्ण एक सिद्ध व्यक्तित्व के धनी हैं जिन्होंने महाराजश्री के अन्तःकरण बाल्यकाल में ही सात्विक एवं वैदिक संस्कारों का  बीजारोपण किया। कुछ समय पश्चात अपने माता पिता के पास मां मीनाक्षी की नगरी मदुरई चले गए। आपने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तम अंको से उत्तीर्ण की। मदुरई में आपके पिताश्री के परम मित्र आचार्य श्री सुदामा जी ने महाराज जी की विलक्षण आध्यात्मिकता को परखा। मित्र होने के नाते महाराज श्री के पिताजी से सलाह की क्यों न इस बालक को श्री धाम वृंदावन भेजा जाए, गोविंद एवं सुदामा की परम मित्रता ने इस शुभ संकल्प पर मोहर लगा दी। आचार्य श्री सन् 1995 में श्री धाम वृंदावन अध्ययन करने के लिए पहुंच गए और वहां जगद्गुरु निंबार्काचार्य टोपी कुंज पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महंत श्री ललिता शरण जी महाराज के सानिध्य में रहकर वेद और पुराणों में संलग्न हो गए। समय ने करवट ली महाराज श्री के पिता श्री ने सन् 1998 में भगवान श्री हरि के धाम को प्राप्त किया महाराज श्री पुनः शक्तिनगरी मदुरै आ गए। पूज्य श्री ललिता शरण जी महाराज के बताए हुए पथ पर अग्रसर हो लगन से अध्ययनरत रहे अतः गुरु कृपा से आपने अल्पकाल में ही वेद वाणी पर अपना वर्चस्व प्राप्त किया और महाराज श्री ने अपनी कर्मभूमि हेतु चेन्नई को चुना। दक्षिण भारत की विशेष ज्योतिषीय प्रणाली कृष्णमूर्ति पद्धति में ज्योतिष सम्राट की पदवी प्रो. हरिहरण द्वारा सन् 2010 में प्राप्त की। महाराज श्री ने अनेकों विद्याएं जैसे रैकी की सन् 2003, ज्योतिष रत्न सन् 2005, वास्तु शास्त्र सन् 2007, एवं डॉक्टर प्रो. जितेन द्वारा पैरा वास्तु (आधुनिक वास्तु) सन 2010 में प्राप्त की।

महाराज श्री को विभिन्न भाषाओं में प्रवचन करने की विज्ञता प्राप्त है जैसे संस्कृत, तमिल, तेलुगू, हिंदी, अंग्रेजी एवं अपनी मातृभाषा मारवाड़ी। आपने व्यास परंपरा का निर्वहन करते हुए ब्रह्मलीन पूज्य संत श्री डोंगरेजी महाराज के कृपा पात्र शिष्य आचार्य श्री सुदामा जी महाराज से दीक्षा लेकर व्यासपीठ को ग्रहण किया और उस समय से अनेक देशों प्रांतों में श्रीमद् देवी भागवत, श्रीमद् भागवत, यज्ञ आदि कर्म को माध्यम बनाकर सनातन धर्म के प्रचार में संलग्न है। हमने अपने जीवन में अनेक बार ऐसा अनुभव किया है कि महाराजश्री ने जो कहा वह सटीक एवं अक्षरशः सत्य हुआ। "सर्वे भवन्तु सुखिनः” का भाव ही महाराज श्री के जीवन का संकल्पित भाव है। ब्रह्माण्ड पुराण मे भगवान् हयग्रीव अगस्त्य मुनि से कहते हैं "मन्त्रराजजपश्चैव चक्रराजार्चनं तथा। रहस्यनामपाठश्च नाल्पस्य तपसः फलम्।। अर्थात् दीर्घकालिक तप के पश्चात मन्त्रराज श्रीविद्यामंत्र प्राप्त होता है और महाराज श्री के जीवन मे यह समय आया जब संवत 2075 ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी रविवार से ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी सोमवार तदनुसार 20-05-2018 से 28-05-2018 तक चैन्नई में आयोजित नौ दिवसीय सहस्त्र चंडी महायज्ञ एवं अष्टोत्तर शत देवी भागवत ज्ञान यज्ञ के शुभारंभ पर ब्रह्मलीन पुरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य अनंतश्री विभूषित श्रीधर प्रकाश जी महाराज द्वारा धर्म सम्राट करपात्री जी महाराज के कृपापात्र शिष्य अनंतश्री विभूषित सर्वेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज के सान्निध्य में श्री विद्या के षोडशी मंत्र की दीक्षा दी गई और इस प्रकार महाराजश्री श्रीविद्या की षोडशी दीक्षा प्राप्त कर जीवन में तपस्या व साधना के एक और प्रकल्प से जुड़ गए। अतः ऐसे हमारे परम श्रद्धेय पूज्य महाराजश्री के त्याग, विलक्षण तप व कर्मनिष्ठा को नमन करते हुए भगवती से आपके दीर्घायुष्य और निरन्तर मंगल की कामना करते हैं।। श्रीकृपा।। आपके श्रीमुख से शिलांग के अरविंदो आश्रम में अगामी दिनांक 20 मई 2019 से श्रीमद् देवीभागवत कथा ज्ञान यज्ञ का भव्य आयोजन होने वाला है।

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