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असम-मिजोरम सीमा विवाद : बराक घाटी में 12 घंटे के बंद का दिखा व्यापक असर

 


कछार। असम-मिजोरम सीमावर्ती लैलापुर इलाके में मिजोरम पुलिस की आड़ में उपद्रवियों द्वारा सुनियोजित तरीके से सोमवार को किये गये हमले में असम पुलिस और नागरिकों की हत्या और घायल होने के विरोध में बुधवार को बराक डेमोक्रेटिक फ्रंट (बीडीएफ) और उसके सहयोगियों द्वारा आहूत 12 घंटे के बंद का पूरे बराक घाटी में व्यापक असर देखा गया। मिजोरम के कृत्य से नाराज लोगों ने स्वतःस्फूर्त भाव से बराक घाटी में 12 घंटे के बंद का पालन किया। बराक घाटी के सफल बंद के मद्देनजर बीडीएफ ने राज्य के लोगों का सहयोग करने के आभार व्यक्त किया है।


बीटीएफ के मुख्य संयजोक प्रदीप दत्तराय ने शाम को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन कहा कि दिन के समय विभिन्न स्थानों पर धरना दिया गया। इसके बावजूद संगठन को बंद का पालन कराने के लिए कुछ नहीं करना पड़ा। उन्होंने कहा कि काटाखल में केवल 20 स्वयंसेवकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। जबकि पूरे घाटी में किसी भी अप्रिय घटना की सूचना नहीं है। उन्होंने पुलिस प्रशासन की संयमित और सहानुभूतिपूर्ण भूमिका की भी प्रशंसा की।


प्रदीप दत्तराय ने कहा कि स्थानीय भाजपा विधायकों और नेताओं ने सार्वजनिक रूप से प्रतिबंध का विरोध किया था और लोगों से इसका पालन नहीं करने की अपील की थी। इसके बावजूद बराक के तीन जिलों के लोगों ने पूरी तरह से बंद का पूर्ण समर्थन किया। इससे यह भी साबित होता है कि बराक के नागरिक इस समस्या का तत्काल समाधान तलाश रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में बीडीएफ ने मांग की कि केंद्रीय गृह मंत्रालय और गृह मंत्री के उच्च पदस्थ अधिकारियों का एक दल तत्काल सीमा पर आकर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी में बाड़ को अंतिम रूप देने की व्यवस्था करें। यदि इस मुद्दे को उच्च न्यायालय में ले जाया जाता है तो यह लंबा खिंच जाएगा और सीमावर्ती असम के नागरिकों को भविष्य में और अधिक मिजो आक्रमण का सामना करना पड़ेगा।


बीडीएफ के दो अन्य संयोजक पर्थ दास और जहर तारन ने कहा कि सोमवार को मिजो पुलिस और उपद्रवियों के हाथों असम पुलिस और नागरिकों की मौत जलियांवाला बाग हत्याकांड के बराबर थी और इसके लिए पूरी तरह से केंद्र सरकार जिम्मेदार थी। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी घटना के बाद इस मामले में प्रधानमंत्री की मूक भूमिका अद्भुत है। जहर तारन ने कहा कि मिजोरम में चुनाव नजदीक हैं, केंद्र और असम में भाजपा सरकार सत्तारूढ़ एनडीए की सहयोगी एमएनएफ को रोकने के लिए सभी मामलों में लचीला भूमिका निभा रही है। असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमंत बिस्व सरमा, जिन्होंने कुछ दिनों पहले जोर देकर कहा था कि पुलिस को ड्रग्स को रोकने की आवश्यकता का सामना करना चाहिए, अब कह रहे हैं कि यदि आवश्यक हो तो वह अपनी जान दे सकते हैं, लेकिन राज्य पुलिस मिज़ो पर हमला नहीं करेगी। बीडीएफ के संयोजकों ने कहा कि यह असम के लोगों का अपमान है और इससे सीमा पर तैनात पुलिसकर्मियों का मनोबल टूटना तय है।


बीडीएफ मीडिया सेल के संयोजकों ने कहा कि म्यांमार से मिजोरम में अवैध हथियार, ड्रग्स और यहां तक कि विद्रोही अराकान सेना के सदस्यों की मौजूदगी मिजोरम में हो रही है जो देश की शांति व्यवस्था को प्रभावित कर रही है। इसलिए, असम सरकार को असम-मिजोरम सीमा पर एक इनर लाइन परमिट प्रणाली शुरू करनी चाहिए ताकि कोई भी वैध पहचान और दस्तावेजों के बिना मिजोरम से असम नहीं आ सके और अशांति पैदा न कर सके।


बीडीएफ यूथ फ्रंट के मुख्य संयोजक कल्पर्णब गुप्ता ने कहा कि केंद्र सरकार को मौजूदा स्थिति में बराक सहित मिजोरम में रहने वालों की आजीविका सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। साथ ही उन्होंने मांग की कि सीमावर्ती गांवों में रहने वाले जिम्मेदार नागरिकों को हथियारों का लाइसेंस दिया जाए ताकि वे आत्मरक्षा में उनका इस्तेमाल कर सकें। इस मौके पर संयोजक हृषिकेश दे और जॉयदीप भट्टाचार्य भी मौजूद थे। (हि.स.)

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