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आयो फागण, हुयो खुड़को..देखो बद्री व्यास रो फिड़को

 


बसंत पंचमी के बाद से ही गली-चौराहों पर चंगों की थाप सुनाई देने लगी है और इसके साथ ही होली प्रेमियों का मन मचलने लगा है होली की फुहारों की तरह होली के दिन जैसे-जैसे पास आते हैं मौसम भी बावरा और बेईमान होने लगता है होली केवल रंग, अबीर, पिचकारी और गुलाल का ही नाम नहीं है, यह फगुवाहटी बयार और मस्ती तथा हंसी-ठिठोली का त्योहार है जिसमें हर कोई बच्चा, जवान, बूढ़ा डूबना चाहता है बसंत पंचमी के बाद होली के दिन तक पूरे एक माह से अधिक होली धमाल हर गांव-शहर की हर गली-चौराहे पर सुनाई देगी फागुन आते ही बरबस ही मस्ती, रंग और फागों की झलक आंखों के सामने तैरने लगती है और इसी फागुनी बयार में सुनाई देने लगते हैं सदाबहार गीत-होलिया में उड़े रे गुलाल... चालो देखण ने बाइसा थारो वीरो नाचे रे...इत्यादि| राजस्थान की लोक परंपराओं और प्रथाओं में फागुन मास के अल्हड़ लोकगीत और चंग की थाप अपना एक अलग ही महत्व रखते हैं| मस्ती और छेड़छाड़ भरे लोकगीतों के स्वर उस समय अधिक सुरीले हो जाते हैं जब घुंघरू की झंकार के साथ चंग की थाप में मस्तानों की टोलियां झूमती नजर आने लगती हैं होली के त्योहार की मस्ती हो और चंग न बजे, ऐसा कैसे हो सकता है  


होली के आगमन के साथ ही हर चौराहे पर चंगों की थाप सुनाई देने लगती है और ऐसे मनमोहक क्षणों में सुरमयी अंदाज लिए जब गुवाहाटी में होली की टोलियां-जिनमें रंगीलो राजस्थान तथा होली की टोली सहित अन्य छोटी-छोटी टोलियां दस्तक देती हैं तो होली प्रेमी लालायित हो उठते हैं इन्हें देखने-सुनने को फैंसी बाजार में फ्रेंड्स क्लब के तत्वावधान में होली के मौके पर होने वाले सांस्कृतिक आयोजन की सभी लोग बाट जोहते हैं


आधुनिकता की चादर में समय ने बहुत सारी करवटें लीं लेकिन आज भी राजस्थानी समाज की लोक संस्कृति की झलक हमें होली के अवसर पर खूब देखने को मिलती है सभी लोग अपने-अपने ढंग से होली की परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं इनमें रंगीलो राजस्थान तथा होली की टोली की टीम अहम भूमिका निभा रहे हैं जो कि राजस्थान से सुदूर पूर्वोत्तर भारत में राजस्थानी लोक परंपरा को जीवित रखे हुए है   


लोक गायक बद्री व्यास की सुरगंगा म्यूजिकल टीम इस लोक परंपरा को आगे बढ़ाने में एक अहम स्थान रखती है बद्री व्यास पारंपरिक×तथा होली के अत्याधुनिक गीतों और धमाल से पिछले कई दशकों से देश तथा पूर्वोत्तर के लोगों, खासकर असम के होली प्रेमियों को आनंदित करते आए हैं


लोक गायक बद्री व्यास सुरगंगा की अपनी टीम के साथ एक बार फिर फागुन की फिजा में रंग घोलने के लिए तैयार हैं गौरतलब है कि इस बार होली १४ मार्च (शुक्रवार) को है


यह सर्वविदित है कि पूर्वोत्तर भारत में पारंपरिक होली को स्टेज पर लाने का श्रेय लोकगायक बद्री व्यास को जाता है उन्होंने तीन दशक पहले इसकी शुरुआत की थी  पहले यहां कभी भी होली का स्टेज प्रोग्राम नहीं होता था| उन्होंने ही छोटे रूप से इसकी शुरुआत की जो कि आज विशाल रूप ले चुका है अब पूर्वोत्तर के हर गांव-हर शहर में होली के स्टेज शो होते हैं इसमें एक खास बात यह भी थी कि बद्री व्यास के स्टेज शो में सारे स्थानीय कलाकार असमिया कलाकार होते हैं चाहे वे म्यूजिशियन हों या फिर गायिका हों या नृत्यांगना हों सब कुछ लोकल होता है बद्री व्यास ने न सिर्फ यहां के कलाकारों को राजस्थानी भाषा से अवगत कराया, बल्कि वाद्य कलाकारों को राजस्थानी संगीत का गुर सिखाया ये बद्री व्यास ही थे जिन्होंने असम में राजस्थानी होली गीतों के एलबम की शुरुआत की उन्होंने जब होली कार्यक्रम पेश करना आरंभ किया तब से असम के ही गायिकाओं के साथ मिलकर होली गीतों के एलबम का यह सिलसिला शुरू हो गया उसके बाद लगातार सुरगंगा के बैनर तले कई राजस्थानी होली के एलबम बनाए गए, जो कि सुपरहिट हुए बद्री व्यास पूर्वोत्तर के छोटे से लेकर सभी बड़े शहरों में होली के कार्यक्रम कर चुके हैं 


वे कहते हैं- ‘वैसे सुरगंगा म्यूजिकल ग्रुप अब इतना बड़ा हो चुका है कि मेरे साथ काफी कलाकार असम के बाहर से जुड़ गए हैं अब मुझे पूरे साल देशभर में राजस्थानी गीतों के लिए श्रोतागण आमंत्रित करते रहते हैं यह सब मेरे लिए श्रोताओं का बहुत बड़ा सम्मान है’ सुरगंगा की टीम जहां भी जिस मंच पर अपना कार्यक्रम पेश करती है वह अपनी छाप छोड़ जाती है


बद्री व्यास और सुरगंगा की पूरी टीम को श्रोताओं का भरपूर सम्मान मिलता रहा है और जहां भी जिस मंच पर जाते हैं वहां धूम मचाकर रख देते हैं


बहरहाल, असम के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों के संगीत रसिकों व लोगों के मन-मिजाज को फगुवाहटी तेवर व खनकते सुरों से सराबोर करने के लिए इस बार भी बद्री व्यास अपनी पूरी टीम के साथ होली का धमाल मचाने को तैयार हैं

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