गुवाहाटी। श्री मारवाड़ी हिंदी पुस्तकालय के तत्वावधान में दिनांक 2 मार्च ,रविवार को 11 बजे से एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय था "क्या सभी असम वासियों को असमिया सीखना आवश्यक है ?"गोष्ठी का आरंभ करते हुए बौद्धिक विकास समिति की संयोजक कांता अग्रवाल ने सर्वप्रथम अध्यक्ष विनोद रिंगानिया को आमंत्रित किया। उन्होंने अपने वक्तव्य के माध्यम से असमिया भाषा के इतिहास और भूगोल पर प्रकाश डाला साथ ही यह भी बताया कि असमिया एक प्राचीन भाषा है और इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला हुआ है। हिन्दी से तुलना करते हुए उन्होंने यह भी बताया के धीरे धीरे असमिया का भूगोल सिकुड़ने लगा है और यह भाषा असुरक्षा के घेरे में आ गई है। प्रमोद तिवारी ने कहा कि भाषा थोपी नहीं जानी चाहिए और इसे स्वंय अपना स्थान बनाने के लिए स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए। लक्ष्मीपत बैद ने कहा कि स्थानीय भाषा जानने से हर क्षेत्र में माहौल बहुत सहज हो जाता है। किशोर जैन ने कहा कि असमिया भाषा जानने से व्यापार साहित्य आदि हर क्षेत्र में उन्हें बहुत फ़ायदा मिला और असमिया भाषा सीखना सामाजिक एकता का प्रतीक है। रतन अग्रवाल ने असमिया भाषा में अपना वक्तव्य रखते हुए कहा कि असम में सरकारी नौकरी में असमिया का ज्ञान अनिवार्य है। और उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में असमिया भाषा जानने के कारण बहुत फ़ायदा मिला। मालविका राय मेधी ने कहा कि आजकल असमिया भाषा को जब अंग्रेज़ी या हिंदी के ज़रिए सीखा जाता है तो उसमें उच्चारण की त्रुटियां रह जाती है। संतोष बैद ने कहा कि असमिया भाषा को थोपने की बजाय उसे एक सहज और प्यार भरे माहौल में सीखने देने की कोशिश करनी चाहिए। अंजना जैन ने कहा कि रोज़मर्रा जीवन में श्रमिकों के साथ संवाद करने में जब उन्हें दिक़्क़त का सामना करना पड़ा तब फिर उन्होंने असमिया सीखना आरंभ की ।लिपिका मोदी ने कहा कि ,भाषा भाषा है जीवन नहीं ,अत: असमिया सीखना बाध्यता मूलक नहीं होना चाहिए। सरोज जालान ने कहा कि असमिया भाषा आपसी समन्वय की भाषा है ,यह एक सहज और सरल भाषा है। राजेश मोर ने कहा कि जो लोग असमिया नहीं सीख पाए उनके लिए व्यवस्था करनी चाहिए। पुष्पा सोनी ने अपनी कविता के माध्यम से कहा कि हमें अपनी मातृभाषा मारवाड़ी और स्थानीय भाषा असमिया दोनों से ही प्रेम है। अंशु सारडा ने कहा कि पिछले २६ वर्षों में उसे कभी भी असमिया सीखने की अनिवार्यता महसूस नहीं हुई। डॉक्टर सुरेश रंजन गोदुका ने कहा कि हिंदी ने बहुत सी लोकभाषाओं जैसे भोजपुरी, राजस्थानी आदि को निगल लिया है इसलिए असमिया लोगों को हिन्दी भाषी लोगों से असुरक्षा महसूस होती है। प्रज्ञा माया शर्मा ने कहा कि आसाम की सुगंध बचाने के लिए सभी को असमिया सीखना बहुत ज़रूरी है। सुरेंद्र सिंह ने कहा कि असम में रह कर असमिया बोलना अति आवश्यक है। सविता जोशी ने कहा कि मातृ भाषा मारवाड़ी के साथ साथ घर के बाहर हमें असमिया भी बोलनी चाहिए।
अन्त में विचार गोष्ठी के सम्पूर्ण सारांश को अध्यक्ष विनोद रिंगानिया ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि असम में लोग असमिया भाषा के अस्तित्व को बचाने के लिए शहीद हो जाते हैं। यह एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा भी है और हरेक असम वासी को असमिया ज़रूर सीखनी चाहिए । कार्यक्रम में कृष्ण कुमार जालान ,अजय चौखानी एवं सचिव सिद्धार्थ नवलगढ़िया भी मौजूद थे। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन कान्ता अग्रवाल ने किया।
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