गुवाहाटी। एक साधारण किंतु असाधारण बहुमूखी प्रतिभा के धनी हिंदी व असमिया साहित्य जगत के चिर परिचित गुमनाम गीतकार, अनुवादक,उद्घोषक,कवि साहित्यकार व पत्रकार रविकांत नीरज का अपने पेतृक गांव में २४अप्रेल को आकस्मिक निधन हो गया। २७ अप्रैल की शाम ६ बजे सीताराम ठाकुर बाड़ी में अपने कार्यालय में वरिष्ठ सदस्या श्रीमती सरोज जालान की अध्यक्षता में ब्रह्मपुत्र साहित्य सभा द्वारा आयोजित शोक सभा में नीरज को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। नीरज की दिवगंत आत्मा को श्रद्धांजलि देने हेतु श्री मती सरोज जालान, किशोर कुमार जैन, नारायण खाकोलिया, कांता अग्रवाल, सौरभ बोथरा, पुष्पा सोनी, अंशु शारडा, विजय सेठी व संपत मिश्र उपस्थित थे। गमगीन माहौल में सभी सदस्यों ने अपने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि एक साहित्यकार के रूप में उनको जो सम्मान मिलना था वो नहीं मिल पाया। उन्होंने कभी भी साहित्य को व्यापार नहीं समझा। साहित्य के लिए साहित्य का काम करने हेतु आलाप नाम से एक समुह भी उन्होंने बनाया। नवोदित लेखकों की रचनाएं पढ़कर उन्हें प्रोत्साहित करने के अलावा और भी बेहतर लेखन के लिए प्रेरित भी किया करते थे। आकाशवाणी केन्द्र तथा दूरदर्शन केन्द्र गुवाहाटी में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में न सिर्फ भाग लिया बल्कि कईयों को मौका भी दिया। वे स्वभाव से कड़क थे लेकिन आत्मीयता से भी पेश आते थे। हिन्दी के लगभग सभी मुर्द्धन्य साहित्यकारों से उनका परिचय व मेलजोल था लेकिन उनमें किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं था। अत्यंत स्वाभिमानी होने के कारण शारीरिक, मानसिक, आर्थिक स्थिति से कमजोर होने के बावजूद अपनी जरूरतों का किसी को अहसास तक नहीं होने दिया। साहित्य का मर्मज्ञ होने के साथ साथ वे कला, संस्कृति के मर्मज्ञ भी थे। उन्होंने असमिया साहित्य की बहुत सी रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया था। असीम ज्ञान के अधिकारी नीरज जी सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। उनके आकस्मिक निधन की खबर सुनकर सामाजिक माध्यम से अनेकों गुणानुरागियों ने उनका गुणानुवाद करते हुए शोक व्यक्त किया है। अंत में सभी उपस्थित सदस्यों ने उनकी आत्मा की शांति हेतु एक मिनट का मौन रखा।
इससे पूर्व ब्रह्मपुत्र साहित्य सभा ने आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में किए गए आतंकवादी हमले की भर्त्सना करते हुए मारे गए लोगों को भी श्रद्धांजलि दी।
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