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जल निकासी की नब्ज पर लगा है कचरे का ताला

 


संपत मिश्र


तस्वीर को देखने पर पहली नजर में यह किसी हरियाली से ढके मैदान जैसा लगता है लेकिन असल में यह गुवाहाटी के बोरसीला बिल का हिस्सा है जो जलकुंभी और कचरे से पूरी तरह अवरुद्ध हो चुका है। जलधारा के स्थान पर अब स्थिर हरियाली ने जगह ले ली है, जिससे पानी का बहाव रुक गया है और पूरे शहर में जल जमाव की गंभीर समस्या उत्पन्न हो रही है।



गुवाहाटी की धड़कन कहे जाने वाले बोरसीला बिल की हालत आज सोचनीय है। चाबीपुल अर्थात डॉ. भीमराव अंबेडकर चौक के पास जलकुंभी की हरियाली अब सुंदरता का प्रतीक नहीं बल्कि उपेक्षा की कहानी बन चुकी है। जिसने पूरे जल निकासी तंत्र की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है।


बोरसीला बिल कोई साधारण नाला नहीं यह महानगर के जीवन का मार्ग है जो जु रोड, अनिल नगर, भांगागढ़, पलटन बाजार, छत्रीबाड़ी और शांतिपुर जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों से होते हुए ब्रह्मपुत्र से मिलता है। लेकिन आज इसका अस्तित्व गंदगी, प्लास्टिक और जलकुंभी के भार तले दबा हुआ है।


28 तारीख से लगातार हुई बारिश ने इस उपेक्षा की परतें उधेड़ दीं। पानी के बहाव का रास्ता जब रुका तो कृत्रिम बाढ़ जैसे हालात बन गए। प्रशासन द्वारा बिल को जलकुंभी से मुक्त करने का प्रयास यदि इसी धीमी गति से चलता रहा, तो हर बरसात एक आपदा में बदलेगी।


बारिश आती है तो शहर में जल जमाव की त्रासदी उतर आती है। कृत्रिम बाढ़ की यह कहानी अब हर मानसून में दोहराई जाती है। सवाल ये है कि कब तक? क्यों हमारी व्यवस्थाएं तब जागती हैं जब शहर की सड़कों पर नावें चलने लगती हैं?


इतिहास गवाह है कि 2004, 2010 और 2017 में भी भारी बारिश के बाद गुवाहाटी में ऐसी ही जलजमाव की स्थिति बनी थी और हर बार बोरसीला बिल का अवरुद्ध होना प्रमुख कारणों में से एक पाया गया। हर बार योजनाएं बनीं, सर्वे हुए, बजट आवंटित हुआ पर निष्पादन अधूरा ही रहा।


साफ-सफाई की मुहिम अगर सिर्फ दिखावे तक सीमित रहेगी तो यह शहर दम घुटने को मजबूर रहेगा। बोरसीला बिल की सफाई केवल एक प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं बल्कि नागरिक जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए।


आज वक्त है चेतने का क्योंकि अगर हमने जल निकासी की इस नब्ज को अब भी नहीं खोला तो कल शहर पूरी तरह जाम हो जाएगा। बोरसीला को जिंदा रखना गुवाहाटी को सुरक्षित रखना है।

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