रसोईघर केवल भोजन पकाने की जगह नहीं, बल्कि पूरे परिवार की ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का आधार होती है। वास्तु शास्त्र में रसोई से जुड़ी कई आवश्यक बातें बताई गई हैं, जिनका पालन करने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और जीवन में सुख-शांति आती है।
रसोई की उचित दिशा
वास्तु के अनुसार रसोई का सबसे उपयुक्त स्थान दक्षिण-पूर्व दिशा (अग्नि कोण) है, क्योंकि यह अग्नि तत्व से जुड़ी होती है। यदि यह दिशा उपलब्ध न हो, तो उत्तर-पश्चिम दिशा को विकल्प के रूप में लिया जा सकता है। रसोई की दीवारें शौचालय से सटी न हों।
अग्नि तत्व और चूल्हे की दिशा
चूल्हा अग्नि पद (123.75° से 146.25° के बीच) या अंतरिश पथ में होना चाहिए। खाना बनाते समय व्यक्ति का मुख पूर्व की ओर होना चाहिए। अग्नि पद में जल स्रोत जैसे सिंक नहीं रखने चाहिए, इससे अग्नि और जल तत्व का टकराव होता है, जो आर्थिक असंतुलन का कारण बनता है। रात्रि में दक्षिण-पूर्व में जूठे बर्तन नहीं छोड़ने चाहिए।
उपकरणों का स्थान
मिक्सर, ग्राइंडर आदि पूर्व व दक्षिण-पूर्व के बीच रखें। घी और तेल का भंडारण दक्षिण-पूर्व से दक्षिण दिशा में करें। पीने का पानी उत्तर या उत्तर-पूर्व में रखें। चूल्हे के पास खिड़की अग्नि या अंतरिश पथ में होनी चाहिए।
प्राकृतिक प्रकाश और वेंटिलेशन
पूर्वी दीवार पर एग्जॉस्ट फैन लगाना चाहिए। रसोई में खिड़कियां उत्तर या पूर्व दिशा में होनी चाहिए, ताकि पर्याप्त प्रकाश व वायु का संचार बना रहे। दक्षिण-पूर्व क्षेत्र को साफ और सुसज्जित रखें।
भंडारण की व्यवस्था
अनाज, दालें और मसाले दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखें। उत्तर और उत्तर-पूर्व को हल्का और अव्यवस्थित रहित रखें।
रंग और सजावट
रसोई में सफेद, पीला, क्रीम और सुनहरा रंग शुभ माने जाते हैं। अन्नपूर्णा देवी का चित्र रसोई में लगाना शुभ होता है।
धार्मिक परंपराएं
पहली रोटी गाय के लिए और अंतिम रोटी कुत्ते को देने की परंपरा न केवल शुभ मानी जाती है, बल्कि यह करुणा और संतुलन का प्रतीक भी है।
वास्तु के इन सरल नियमों को अपनाकर आप अपनी रसोई को एक सकारात्मक, संतुलित और समृद्ध स्थान बना सकते हैं।
प्रेषक:
देवकीनंदन देवड़ा
सरूत
9377607101
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