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असम को जनजाति राज्य का दर्जा और अंतरराज्यीय पारपत्र. (इनर लाइन परमिट ) लागू करने की मांग

 


लखीमपुर में जनजाति सुरक्षा परिषद की परिचर्चा आयोजित


आज लखीमपुर वाणिज्य महाविद्यालय के सभागार में जनजाति सुरक्षा परिषद के तत्वावधान में “असम को जनजाति राज्य का दर्जा देने और “अंतरराज्यीय पारपत्र. (इनर लाइन परमिट )” लागू करने की मांग को लेकर एक महत्वपूर्ण परिचर्चा आयोजित की गई।


कार्यक्रम की अध्यक्षता परिषद के मुख्य अध्यक्ष डॉ. दुरलभ समुआई ने की, जबकि उद्घाटन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. लोहित हजारिका ने किया। सर्व असम कोच-राजवंशी छात्र संघ के महासचिव दीपक बरा कोच मुख्य आयोजक के रूप में उपस्थित थे।


परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि असम के सभी मूल निवासी जनजातीय समुदाय — चाहे वे सूचीबद्ध हों या गैर-सूचीबद्ध — आज अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। कोच राजवंशी, मोरान-मोटोक, ताई अहोम, चुटिया, मिसिंग, बोडो, सोणोवाल कछारी, देउरी सहित अन्य समुदायों को जनजाति सूची में सम्मिलित कर सुरक्षा प्रदान करने की मांग की गई।


वक्ताओं ने कहा कि जैसे त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में “अंतरराज्यीय पारपत्र. (इनर लाइन परमिट )” प्रणाली लागू है, वैसे ही असम में भी इस व्यवस्था को लागू किया जाए ताकि राज्य के सभी स्थानीय समुदाय सुरक्षित रह सकें। साथ ही असम को “जनजाति (संरक्षित) राज्य” का दर्जा देने की मांग रखी गई।


परिचर्चा में 1935 में भीमर देवुरी द्वारा असम को जनजाति राज्य के रूप में विकसित करने के प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा गया कि उस सपने को साकार करने के लिए आज सभी स्थानीय जनजातियों को एकजुट होकर आंदोलन करना होगा।


वक्ताओं ने यह भी कहा कि असम समझौते की धारा 6 लागू न होने से असमिया समाज असुरक्षित महसूस कर रहा है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।


कार्यक्रम में उत्तर-पूर्व मंगोलियन फोरम के सहायक संपादक व मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. परशमणि सिंह, एएसएए के गॉडविन हेमरों, सर्व असम निबनुवा संघ के महासचिव जीवन राजखोवा, पत्रकार राजू सिंह, तायपा महिला परिषद असम की मंदिरा चांगमाई, परिषद के सचिव प्रमुख उदय शंकर मोहन, सर्व असम हिंदू युवा परिषद के महासचिव संभवु सिंह सहित छह जनजातीय समुदायों के प्रतिनिधि और कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।


परिचर्चा में यह सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि असम की सुरक्षा और स्थानीय जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अहिंसक आंदोलन, जनजागरण और राजनीतिक दबाव के माध्यम से “अंतरराज्यीय पारपत्र. (इनर लाइन परमिट )” लागू कर असम को जनजाति राज्य का दर्जा दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

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