गुवाहाटी। गुवाहाटी महानगरी की हृदय स्थली में स्थित नीलांचल पहाड़ में विश्वविख्यात कामाख्या शक्तिपीठ में अंबुबासी महायोग के उपलक्ष्य में पूरे इलाके में श्रद्धा और भक्ति का माहौल व्याप्त हो गया। आज बुधवार को निवृत्ति की पश्चात कमख्या मंदिर के कपाट दर्शनार्थियों के लिए खोल दिए गए। इस अवसर पर दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगी हुई थी। निवृत्ति 25 जून की रात को 9:05 बजे हुई। इसके बाद 26 जून प्रातःकाल में कामाख्या मंदिर का पट सूर्योदय के बाद खोल दिया गया। कामाख्या देवोत्तर बोर्ड के अनुसार इस वर्ष सत्रह लाख लोगों ने मां कामाख्या की मंदिर में परिक्रमा की। असम, बंगाल और नेपाल के अलावा भी दूरदराज के राज्यों से भक्तों का सैलाब कामाख्या मंदिर की ओर उमड़ पड़ा। मुख्य सड़क मार्ग से प्रायः 3 किलोमीटर पहाड़ी पर चढ़ाई करने के पश्चात श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं। विश्व का शायद यही एक ऐसा मंदिर होगा जिसमें मां शक्ति की प्रतिमा विराजित ना होकर योनि मुद्रा में मां स्थापित है। यह शक्तिपीठ तंत्र साधना के लिए जाना जाता है। यहां पूजा अर्चना आदि सभी तांत्रिक विधान से होती है। बलि प्रथा का भी यहां प्रचलन है।हर वर्ष 22 जून से 25 जून तक मां रजस्वला होती है।इस अवसर पर 3 दिन तक मां के मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। इस योग को अंबुबासी महायोग के नाम से पुकारा जाता है। महायोग के अवसर पर तंत्र साधना करने से बहुत जल्द सिद्धि प्राप्त होती है। अर्थात यह 3 दिनों का मुहूर्त तंत्र साधना के लिए सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है। दूर-दूर से छोटे बड़े महान प्रसिद्ध तांत्रिक आकर यहां मंदिर के आसपास अथवा पहाड़ी गुफाओं में बैठकर तंत्र साधना करते हैं। अघोरी बाबा मंदिर के पास स्थित श्मशान में बैठकर रात्रि को अघोरी मंत्र की साधनाएं करते हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि जब भगवान शिव हवन कुंड में जली सती का शव लेकर आकाश में क्रोधित होकर विचरण कर रहे थे। उस समय उनका क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के 51 टुकड़े कर दिये थे। ताकि भगवान शिव का क्रोध शांत हो सके। वे टुकड़े आकाश मार्ग से भारत भूमि में जहां-जहां गिरे वहां वहां एक एक शक्ति पीठ की स्थापना हुई। गुवाहाटी नीलांचल पर्वत पर मां सती का यौन अंग कट कर गिरा था।अतः यहां योनि मुद्रा स्थापित की गई एवं योनि की ही पूजा होती है। 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मां कामाख्या शक्तिपीठ सबसे ज्यादा जागृत शक्ति पीठ माना जाता है। अंबुबासी महायोग के उपलक्ष में कामाख्या मंदिर के साथ ही नीलांचल पहाड़ स्थित सभी देवीयों के मंदिरों के कपाट बंद कर दिये जाते है। इस अवसर पर असम और बंगाल में कोई भी धार्मिक व मांगलिक कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाता है। किसान अपने खेतों में हल नहीं चलाते हैं। किसी धार्मिक पुस्तक का पठन भी नहीं किया जाता। मां की निवृत्ति होने के बाद यह महायोग समाप्त हो जाता है। साथ ही देवी के मंदिर की सफाई के बाद मंदिर के पंडा द्वारा पूजा करने के बाद मंदिर के कपाट को आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है। इससे पहले कपाट बंद करते समय मां की योनि को सफेद वस्त्र से ढक दिया जाता है। जब कपाट खोला जाता है तो रजस्वला के रक्त स्राव से सफेद वस्त्र लाल रंग में रंगा हुआ होता है। यही वस्त्र श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। जो कि काफी चमत्कारिक होता है। अंबुबासी एक महा योग है। श्रद्धालुओं ने इस महायोग को एक मेले की शक्ल में बदल दिया और यह अंबुबासी मेले के नाम से जाना जाने लगा। रोज लाखों श्रद्धालु मंदिर की ओर उमा कर मंदिर की परिक्रमा करते हैं। इस भीड़ के चलते पूरा माहौल एक धार्मिक मेले जैसा लगने लगता है।
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