प्रवेश मिश्र
अफवाह की फैक्ट्री बन चुका है पूरा सोशल मीडिया। जिस सोशल मीडिया ने करोड़ो भारतीयों को बहुत ज्यादा व्यस्त बना दिया है वह आजकल अनेकों मौत का कारण बन रहा है। दरअसल बात ऐसी है की वॉट्सऐप, फेसबुक इत्यादी सोशल मीडिया के माध्यम से देश भर में पिछले कुछ दिनों से बच्चा चोर गैंग के सक्रिय होने की खबर एक दुसरे को भेजी जा रही है। दिन भर अपना समय सोशल मीडिया में बिताने वाले वर्चुअल दुनिया के पूंजीपतियों ने इस बात को इतनी गंभीरता से ले लिया की पिछले कुछ दिनों में इस मुद्दे पर दर्जनों लोगो को मौत के घाट उतार दिया। बच्चा चोरी के नाम पर देश में भीड़ पर खून सवार हो चुका है। सोशल मीडिया एक सुखा जंगल है। बस एक चिंगारी लगाने की देरी है। जैसे ही कोई संदिग्ध दिखता है तो भीड़ आग के दरिया की तरह उस तक भागती है। 20 मई से अब तक 19 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया है। असम में 2, पश्चिम बंगाल में 2, त्रिपुरा में 2, गुजरात में 1, महाराष्ट्र में 7, कर्नाटक में 1, आंध्र प्रदेश में 2 और तेलंगाना में 2 की मौत हो चुकी है। वर्तमान समय में सोशल मीडिया के सकारात्मक पक्षों पर उतनी चर्चा नहीं हुई है, जितनी उसके नकारात्मक पक्षों की हो रही है। जिस तरह का घटनाक्रम भारत में चल रहा है, यह सोशल मीडिया डिजिटल बम की तरह काम कर रहा है।
क्या है सोशल मीडिया?
वैसे तो सोशल मीडिया का इतिहास बहुत पुराना है पर इंटरनेट के इतने प्रचलित ना होने के कारण यह मीडिया प्रसिद्ध नहीं हो पाया। भारत की बात करें तो पिछले कुछ सालों में इंटरनेट क्रांति आने के बाद इसका इस्तेमाल चारों ओर हो रहा है। किसी ना किसी तरीके से बच्चे हो या बड़े सभी अपने आप को सोशल मीडिया के द्वारा जोड़ना चाहते हैं। यह एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा आप जानकारी को साझा कर सकते हैं। इसमें फेसबुक, वॉट्सऐप, ट्विटर, इंस्टाग्राम इत्यादि शामिल है।
क्या है सोशल मीडिया के नुकसान?
सोशल मीडिया का अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग गंभीर लत का कारण बन सकता है। जो चीज़ हमें फायदा देती है वह नुकसान भी पहुंचाती है। सोशल मीडिया पर अपने हितों के अनुसार जानकारी या खबर को बनाया जा सकता है जो लोगों के अंदर भ्रम पैदा कर सकती है। यह कोई भी कर सकता है और कुछ भी मकसद हो सकता है। राजनैतिक, व्यापारिक लाभ लेना या किसी को नुकसान देना, कुछ भी मनसा हो सकती है। किसी तरह की इनफार्मेशन को बदल कर उसे हिंसात्मक रूप दे दिया जा सकता है। कई असमाजिक तत्व सोशल मीडिया के माध्यम से कई भड़काऊ वीडियो या फोटो अपलोड करते है जिससे की हिंसा होने का भय बना रहता है। पहले जब भी दंगे या हिंसा की वारदातें होती थी तो सबसे पहले रास्ते बंद होते थे पर अब सोशल मीडिया के इस दौर में सबसे पहले मोबाइल डाटा को डाउन किया जाता है ताकि अफवाह ना फैल सके।
क्या हुआ था असम में ?
सोशल मीडिया पर फैली अफवाह के चलते दो युवकों, निलोत्पल दास व अभिजीत नाथ को डकमका थाना क्षेत्र में बच्चे पकड़ने वाले गिरोह का सदस्य समझकर भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दि गयी। दोनों ही कार्बी आंगलोंग जिले में एक पिकनिक स्पॉट पर गए थे, लौटते वक़्त संदेह कर के लोगो ने उनकी गाड़ी पर हमला कर दिया। दोनों अपने आप को निर्दोष साबित करते रहे। छोड़ने की गुहार लगाते रहे। पर जनता पर तो खून सवार था। दोनों को जान से मार कर ही शांत हुए। हाल ही मे अफवाह के नाम पर फिर असम के डिमा हसाउ जिला मुख्यालय हाफलांग में तीन साधुओं की भीड़ ने जमकर पिटाई कर दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने तीनों साधुओं को बचा लिया।
क्या सोशल मीडिया पर नियंत्रण हो सकता है ?
जैसे पानी के बहाव को नाव तय नहीं करती थिक वैसे ही सोशल मीडिया पर निगरानी और उसके योगदान को तय करना भी फिलहाल सरकार के एजेंडे से बाहर का काम है। कुछ लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया पर नियंत्रण लगाना लोगों के अभिव्यक्ति के अधिकारों के खिलाफ है। मेरा यह कहना है की अभिव्यक्ति की आजादी का एक दायरा होता है। अगर कोई इस दायरे से बाहर जाता है तो जरुर कोई कार्रवाई होनी चाहिए। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वॉट्सऐप के द्वारा अफवाह फैलने और इससे होने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाओं से चिंतित सरकार ने कंपनी को चेतावनी दी है कि वह इसे रोकने के लिए उपाय करे। इस पर वॉट्सऐप ने अपनी प्रतिक्रया देते हुए कुछ बदलाव का आश्वाशन दिया है।
हमे क्या करना चाहिये अफवाहों को रोकने के लिए?
हम सबको जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार अपनाना होगा। सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही अफवाहों में फंसना नहीं है। हमे कानून को अपने हाथ में नहीं लेना है। अगर मान लीजिये किसी की गतिविधियाँ संदिग्ध लग रहीं है तो तुरंत पुलिस से जानकारी साझा करें। अफवाह फ़ैलाने वालो की कोई विशेष जमात नहीं होती, वह आप और हम ही है जिनके वजह से अफवाह फैलती है। जी हाँ आपने सही सूना। हर दिन सोशल मीडिया के माध्यम से बिना सोचे-समझे ताबड़तोड़ जो हम मेसेज फॉरवर्ड करते है, क्या हमने उस खबर या जानकारी की प्रमाणिकता के बारे में सोचा है। विज्ञान में दिनों दिन अग्रसर हो रहे इस देश में हम आज भी मानते है की वॉट्सऐप पर 11 बार किसी भगवान् के मेसेज को फॉरवर्ड कर देंगे तो हमारी मनोकामना पुरी हो जाएगी। हम भारतीय इतने भोले भाले और सीधे है की फ़ॉर्वर्डेड मेसेज में भी अगर लिखा हो की अगर यह मेसेज आगे नहीं फॉरवर्ड किया तो आपके साथ कुछ गलत हो जाएगा, इसको भी हम बहुत गंभीरता से लेते है। भारत भावनाओं का देश है और यह ही हमारी बिशेषता है, पर यह भावना ही हमारे लिए घातक बनती जा रही है ।
हममें से अधिकांश लोग सोशल मीडिया में अपनी उपस्तिथि साबित करने के लिए रोज़ एक के बाद एक मेसेज फॉरवर्ड करते है। अगर हम इस पर ही रोक लगा दे तो लगभग लगभग काम अपना हो गया । जब तक किसी खबर या जानकारी का किसी विश्वसनीय स्त्रोत से पुष्टि न हो तब तक ना तो उस पर विश्वास करें और ना ही आगे बढ़ाएं। इतना काम अगर हम जिम्मेदारी से करने लगे तो हम बहुत कुछ बचा सकते है।
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